इलाहबाद हाईकोर्ट के जमानत न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर जताया ऐतराज, कहा इस निर्णय की प्रति सभी न्यायधिशो को भेजी जाये-

इलाहबाद हाईकोर्ट के जमानत न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर जताया ऐतराज, कहा इस निर्णय की प्रति सभी न्यायधिशो को भेजी जाये-

उच्चतम न्यायलय Supreme Court ने एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट Allahabad High Court के फैसले पर कहा कि इस फैसले की सराहना नहीं की जा सकती। न्यायालय ने कहा कि यदि अपील लंबित है तो उसे इसका कोई कारण नहीं नजर आता कि इस तरह की एकल घटना से जुड़े मामले में जमानत क्यों नहीं दी जा सकती।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने जिस तरह से उस व्यक्ति की याचिका खारिज की उसकी सराहना नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में लंबित अपीलों के कारण जमानत याचिका की सुनवाई किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए अपीलकर्ता की जमानत याचिका मंजूर कर ली।

उच्चतम न्यालय ने कहा कि अभी तक संबंधित व्यक्ति ने 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा काट ली है, जबकि उसकी अपील उच्च न्यायालय के समक्ष सात साल से लंबित है। व्यक्ति ने निचली अदालत के 2013 के आदेश के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और अपील लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जी दाखिल की थी।

न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुन्दरेश की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि यह आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए और अन्य न्यायाधीशों के बीच इसे जारी किया जाए ताकि हम उनके रुख में बदलाव देख सकें। इससे लंबे समय से हिरासत में रखे गए लोगों को तो राहत मिलेगी ही, इस शीर्ष अदालत पर बेवजह का दबाव भी कम होगा।’’

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शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता की जमानत अर्जी दिसम्बर 2019 में खारिज कर दी थी और पेपरबुक तैयार करके उसकी अपील की त्वरित सुनवाई के लिए दो सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था, लेकिन पीठ को अवगत कराया गया है कि अपीलकर्ता ने याचिका सूचीबद्ध करने के लिए तीन बार अदालत से गुहार लगायी थी। न्यायालय ने कहा कि इसे गत वर्ष अक्टूबर में सूचीबद्ध तो किया गया परंतु सुनवाई नहीं की गयी।

पीठ ने कहा कि यदि उच्च न्यायालय के आदेश में ही उल्लेखित तारीख ली जाए तो अपीलकर्ता ने तब तक 12 वर्ष जेल में काट लिये थे। न्यायालय ने कहा कि यदि अपील लंबित है तो उसे इसका कोई कारण नहीं नजर आता कि इस तरह की एकल घटना से जुड़े मामले में जमानत क्यों नहीं दी जा सकती।

जानकारी हो किसुप्रीम कोर्ट के सौदान सिंह बनाम यूपी राज्य व अन्य CRIMINAL APPEAL NO.308/2022 में पारित आदेश के मद्देनजर हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोषियों को जमानत देना शुरू किया है।

केस टाइटल – बृजेश कुमार इलियाश रामु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
केस नंबर – क्रिमिनल अपील नंबर 540/2022
कोरम – न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुन्दरेश

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