मुसलमानों की विरासत पर कोई धर्मनिरपेक्ष अधिनियम नहीं है, SC ने पूछा, क्या नास्तिक व्यक्ति पर शरीयत की जगह सामान्य सिविल कानून लागू हो सकते हैं?

Chief Justice DY Chandrachud Justice J.B. Pardiwala and Justice Manoj Misra

केरल की सफिया पीएम नाम ने कहा कि वह आस्तिक नहीं है। इसलिए विरासत के संबंध में मुस्लिम पर्सनल लॉ के बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 द्वारा शासित होना चाहिए।

मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बावजूद नास्तिक व्यक्ति पर क्या शरीयत की जगह सामान्य सिविल कानून लागू हो सकते हैं?

आप मुस्लिम के रूप में पैदा हुए हैं। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 में कहा गया कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं होगा।

सीजेआई डॉ डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने विस्तृत चर्चा के बाद इसे ” अहम सवाल” बताते हुए याचिका पर भारत संघ और केरल राज्य को नोटिस जारी करने का फैसला किया, सुनवाई के लिए सहमति जताई। पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल से कानून अधिकारी को नामित करने का अनुरोध किया, जो न्यायालय की सहायता कर सके। केरल की रहने वाली साफिया पीएम नाम की लड़की की ओर से दाखिल याचिका पर 29 अप्रैल 2024 को सुनवाई की।

दरअसल, लड़की का कहना है कि शरीयत के प्रावधान के चलते उसके पिता चाह कर भी उसे अपनी 1 तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते हैं। बाकी संपत्ति पर भविष्य में पिता के भाइयों के परिवार का कब्ज़ा हो जाने की आशंका है।

वकील ने बताया, अजीब स्थिति में है याचिकाकर्ता-

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया है कि याचिका डालने वाली अजीब स्थिति में है। वह और उसके पिता नास्तिक हैं, लेकिन जन्म से मुस्लिम होने के चलते उन पर शरीयत कानून लागू होता है। याचिकाकर्ता का भाई डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी के चलते असहाय है। वह उसकी देखभाल करती है। शरीयत कानून में बेटी को बेटे से आधी संपत्ति मिलती है। ऐसे में पिता बेटी को 1 तिहाई संपत्ति दे सकते हैं, बाकी 2 तिहाई उन्हें बेटे को देनी होगी। अगर भविष्य में भाई की मृत्यु हो जाएगी तो भाई के हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों के परिवार का भी दावा बन जाएगा।

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मुस्लिम होने से इनकार करने पर भी नहीं मिलेगी संपत्ति-

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद लोगों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है। यही अनुच्छेद इस बात का भी अधिकार देता है कि कोई चाहे तो नास्तिक हो सकता है। इसके बावजूद सिर्फ किसी विशेष मजहब को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब का पर्सनल लॉ मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। वकील ने यह भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह कह देते हैं कि वह मुस्लिम नहीं है, तब भी उनकी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों का दावा बन सकता है।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने अवलोकन किया-

“आप मुस्लिम के रूप में पैदा हुए हैं। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 में कहा गया कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं होगा। भले ही आप शरिया अधिनियम की धारा 3 के तहत वसीयत की घोषणा नहीं करते हैं और मुसलमानों की विरासत पर कोई धर्मनिरपेक्ष अधिनियम नहीं है। आपको उस घोषणा की तलाश करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि शरीयत अधिनियम की धारा 3 कहती है कि जब तक आप घोषणा नहीं करते हैं, तब तक आप व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित नहीं होंगे, लेकिन फिर भी एक शून्य है, क्योंकि यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, यानी घोषणा नहीं करेंगे तो आप किसके द्वारा शासित होंगे?”

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को काफी महत्वपूर्ण माना-

सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल को अहम बताते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा कि वह उसकी सहायता के लिए किसी वकील को नियुक्त करें। दरअसल, शरीयत एक्ट की धारा 3 में प्रावधान है कि मुस्लिम व्यक्ति को यह घोषणा करता है कि वह शरीयत के मुताबिक उत्तराधिकार के नियमों का पालन करेगा, लेकिन जो ऐसा नहीं करता, उसे ‘भारतीय उत्तराधिकार कानून’ का लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि उत्तराधिकार कानून की धारा 58 में यह प्रावधान है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं हो सकता।

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अन्ततः सुप्रीम कोर्ट पीठ ने इस मामले पर विचार करने के लिए तैयार हो गई। याचिकाकर्ता के वकील ने जब कहा कि वह धारा 58 के संबंध में आधार उठाएंगे तो पीठ ने याचिका में संशोधन करने की छूट दी।

अब इस मामले की सुनवाई जुलाई 2024 के दूसरे सप्ताह में होगी।

वाद शीर्षक – सूफिया पीएम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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