क्या हिजाब पहनना स्वतंत्र पसंद का मामला है या युवा लड़कियों को इसे पहनने के लिए मजबूर किया जाता है या दबाव डाला जाता है? सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए विभाजित फैसले में न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए बैन के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया, वहीं दूसरे न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने उनसे उलट राय जाहिर की है।
न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा है कि लड़कियों को स्कूल के गेट में प्रवेश करने से पहले हिजाब उतारने के लिए कहना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा-
“हमारी संवैधानिक योजना के तहत, हिजाब पहनना केवल पसंद का मामला होना चाहिए। यह आवश्यक धार्मिक अभ्यास का मामला हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन यह अभी भी अंतरात्मा, विश्वास और अभिव्यक्ति का मामला है।
न्यायमूर्ति धूलिया ने तब कहा कि “यदि वह अपनी कक्षा के अंदर भी हिजाब पहनना चाहती है, तो उसे रोका नहीं जा सकता, अगर इसे उसकी पसंद के मामले में पहना जाता है, क्योंकि यह एकमात्र तरीका हो सकता है जिससे उसका रूढ़िवादी परिवार उसे जाने की अनुमति देगा। स्कूल, और उन मामलों में, उसका हिजाब उसकी शिक्षा का टिकट है” (जोर दिया गया)। उसी वाक्य में न्यायाधीश का कहना है कि पहनना बच्चे की पसंद का मामला हो सकता है जब उसका “रूढ़िवादी परिवार” उसे स्कूल जाने के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में हिजाब पहनने के लिए मजबूर कर रहा हो। न्यायमूर्ति धूलिया ने यह भी कहा कि “हिजाब प्रतिबंध का दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह होगा कि हम एक बालिका को शिक्षा से वंचित कर देते”।
न्यायमूर्ति धूलिया का कहना है कि एक बालिका के लिए अपने स्कूल के गेट तक पहुंचना आसान नहीं होता है और इस मुद्दे को उस नजरिए से देखा जाना चाहिए, जिसका सामना एक बालिका को अपने स्कूल पहुंचने में पहले से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
न्यायमूर्ति धूलिया का यह भी कहना है कि लड़कियां मदरसों में उतरेंगी क्योंकि उन्हें हिजाब पर प्रतिबंध के कारण तबादला करने के लिए मजबूर किया गया था।
प्रतिबंध हटाने के आदेश-
न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि मैंने 5 फरवरी के सरकारी आदेश को निरस्त करते हुए प्रतिबंध हटाने के आदेश दिए हैं। मैंने सम्मानपूर्वक मतभेद किया है। यह केवल अनुच्छेद 19, और 25 से संबंधित मामला था। यह पसंद की बात है, कुछ ज्यादा नहीं और कुछ कम नहीं।
कौन हैं न्यायमूर्ति धूलिया?
न्यायमूर्ति धूलिया पौड़ी के रहने वाले हैं। उनके दादा भैरव दत्त धूलिया एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने साल 1986 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की थी। 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वह यहां आ गए थे। साल 2004 में वह वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किए गए। इसके बाद उन्हें साल 2008 में हाईकोर्ट में जज बनाया गया। जनवरी 2021 में वह गुवाहाटी हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बनाए गए। मई 2022 में उनकी सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में नियुक्ति की गई थी।
कर्नाटक में शिक्षण संस्थानों में हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने अलग-अलग फैसला सुनाया है। जिसके चलते मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया गया है। जहां न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन को सही ठहराया है। वहीं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के बैन जारी रखने के आदेश को रद्द कर दिया।
अब जानते हैं आखिर न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने बैन को क्यो सही ठहराया है? उन्होंने क्या तर्क देकर हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है?
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने 11 सवाल उठाए और हिजाब बैन को सही ठहरा दिया-
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि हमारी राय अलग है। मेरे आदेश में 11 सवाल उठाए गए हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या छात्रों को अनुच्छेद 19, 21, 25 के तहत वस्त्र चुनने का अधिकार दिया जा सकता है? अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है? व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की व्याख्या किस तरह से की जाए? क्या कॉलेज छात्रों की यूनिफॉर्म पर फैसला कर सकते हैं? क्या हिजाब पहनना और इसे प्रतिबंधित करना धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन है (अनुच्छेद 25)? क्या अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) परस्पर अनन्य हैं? क्या कर्नाटक प्रतिबंध मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है? क्या हिजाब पहनना इस्लाम के तहत आवश्यक अभ्यास का हिस्सा है? क्या सरकारी आदेश शिक्षा तक पहुंच के उद्देश्य को पूरा करता है? क्या अपील को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए?
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता सभी नागरिकों पर लागू होती है। एक धार्मिक समुदाय को धार्मिक प्रतीकों को पहनने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्षता का विरोधी होगा। सरकार के आदेश को धर्मनिरपेक्षता या कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के उद्देश्य के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा ने कहा कि छात्रों को अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा का अधिकार है, लेकिन अपने धर्म के एक हिस्से के रूप में एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में यूनिफॉर्म के अतिरिक्त कुछ पहनने पर जोर देने का नहीं। सरकारी आदेश केवल यह सुनिश्चित करता है कि छात्रों द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म का पालन किया जाए।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि राज्य इस तरह के आदेश के माध्यम से छात्राओं की शिक्षा तक पहुंच को प्रतिबंधित कर रहा है। जस्टिस गुप्ता का अवलोकन तब आया जब उन्होंने सभी अपीलों और रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया।
कौन हैं न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता?
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। जस्टिस गुप्ता पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में जज और पटना हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं। इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए गए। हाई कोर्ट में जज की सेवानिवृत्ति आयु 62 है। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।