पत्नी को बीमार पति का अभिभावक नियुक्त करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि वह अपने पति की ओर से निर्णय लेने की अधिकारी होगी

पत्नी को बीमार पति का अभिभावक नियुक्त करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि वह अपने पति की ओर से निर्णय लेने की अधिकारी होगी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति अस्वस्थ और गंभीर हालत में है तो पत्नी बतौर अभिभावक काम कर सकती है। बशर्ते पति और बच्चों का हित उसमें निहित हो।

संक्षिप्त तथ्य-

याची ने कोर्ट के समक्ष गुहार लगाई थी कि उसके पति विकास शर्मा की हालत गम्भीर है। सिर पर चोट होने से वह कोमा में है। उसकी सास बुजुर्ग हैं और वह भी बीमार हैं। वह प्राईवेट जाब करने से उसकी आमदनी इतनी नहीं है कि वह अपने पति का उपचार करा सके और बच्चे की देखभाल कर सके। इस मामले में, याचिकाकर्ता के पति ने एक पंजीकृत विक्रय पत्र के माध्यम से जमीन का एक टुकड़ा खरीदा है। दुर्भाग्य से, याचिकाकर्ता का पति, जिसने जमीन खरीदी थी, एक दुर्घटना का शिकार हो गया और उसके सिर में गंभीर चोट लग गई। तब से वह बेहोशी की हालत में पड़ा हुआ है। लिहाजा, उसे उसके पति के बैंक एकाउंट को संचालित करने की छूट दी जाए और उसके पति द्वारा गौतमबुद्धनगर में खरीदी गई जमीन को बेचने की अनुमति दी जाए।

न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ उस याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें प्रतिवादी प्राधिकारी को निर्देश दिया गया था कि वह पत्नी को अपने पति के इलाज के लिए अपने पति की संपत्ति बेचने की अनुमति दे, जो सिर की चोट से पीड़ित है।

हाईकोर्ट ने अरुणा रामचन्द्र शानबाग बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले पर गौर किया। जहां सुप्रीम कोर्ट ने स्थायी वनस्पति अवस्था और न्यूनतम चेतन अवस्था के बीच अंतर समझाया और कहा कि विकलांग लोगों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 2 (एस) विकलांग व्यक्तियों को परिभाषित करती है। इस श्रेणी के व्यक्ति वे हैं जो बातचीत करने में सक्षम हैं, हालांकि पूरी तरह से सुसंगत नहीं हैं। इसलिए, अधिनियम की धारा 14 के तहत संरक्षक की नियुक्ति की जानी थी। हालाँकि, कोमा की स्थिति में किसी व्यक्ति के लिए, कोई बातचीत नहीं होती है और पीड़ित किसी भी उत्तेजना का जवाब नहीं देता है, इसलिए, अधिनियम की धारा 2 (एस) के तहत परिभाषित व्यक्तिगत विकलांगता के प्रावधानों को ऐसे मामलों में आकर्षित नहीं किया जा सकता है। इसलिए, बेहोशी की हालत में पड़े मरीजों के व्यापक हित में, जिन्हें उपचार, सहायता की तत्काल आवश्यकता है और इसके लिए उन्हें इस असाधारण स्थिति की देखभाल के लिए धन की आवश्यकता है, जिसे नजरअंदाज या समझौता नहीं किया जा सकता है, इसलिए, न्यायालय सचेत रूप से बाध्य है ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग करना।

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पीठ ने सतुला देवी बनाम सरकार के मामले का हवाला दिया। दिल्ली के एनसीटी में, जहां दिल्ली हाईकोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत नामांकित प्रतिनिधियों के रूप में पत्नी, बेटे और भाई को शामिल करते हुए एक अभिभावक समिति नियुक्त की है और चिकित्सा उपचार, स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों सहित रोगी के सभी मामलों का दैनिक प्रबंधन भी किया है। रहन-सहन, अचल और चल संपत्तियों से संबंधित वित्तीय मामले, रोगी की शेयरधारिता के संबंध में निर्णय, बैंक खाता संचालित करना।

हाईकोर्ट ने आगे सिख अरिजीत भट्टाचार्य बनाम भारत संघ के मामले पर गौर किया, जहां बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता सिखा अरिजीत भट्टाचार्य की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्हें उनके पति डॉ अरिजीत भट्टाचार्य का संरक्षक घोषित कर दिया, जो कि अस्वस्थ थे।

हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद पति के स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट किया है कि उसे 24 घंटे चिकित्सकीय सहायता की जरूरत है। उसकी सारी बचत राशि समाप्त हो चुकी है। लिहाजा, याची पत्नी पूजा शर्मा को पति का अभिभावक नियुक्त करते हुए कहा कि वह अपने पति की ओर से निर्णय लेने की अधिकारी होगी। कोर्ट ने महानिबंधक को भी निर्देश दिया है कि वह याची द्वारा बेची जाने वाली भूमि से मिलने वाली राशि को ऐसे फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश किया जाएगा, जिससे कि अधिकतम ब्याज मिल सके। इसके साथ ही याची के खर्च के लिए बैंक से हर महीने 50 हजार रुपये देने का अनुरोध करेंगे, जिससे कि याची की चिकित्सकीय के साथ अन्य जरूरतें पूरी हो सके।

उपरोक्त के मद्देनजर, पीठ ने याचिका स्वीकार कर ली।

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केस टाइटल – पूजा शर्मा बनाम यूपी राज्य। और 2 अन्य
केस नंबर – रिट सी नंबर – 26406 ऑफ 2023

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