आजमगढ़ फर्जी मदरसा प्रकरण मामले में लखनऊ खंडपीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला करते हुए एसआइटी रिपोर्ट व एफआइआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। ज्ञात हो कि मामला 313 मदरसों में धांधली 39 के मौजूद ही न होने और गबन का था जिसमें एसआइटी ने कारवाई की थी।
लखनऊ खंडपीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आजमगढ़ में फर्जी मदरसों के मामले में एसआइटी रिपोर्ट व एफआइआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि 39 मदरसों के अस्तित्व में ही न होने के बावजूद उनके नाम पर फंड जारी करने का आरोप है, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि मामले में कोई संज्ञेय अपराध नहीं बन रहा है।
मामला 313 मदरसों में धांधली, 39 के मौजूद ही न होने और गबन का था, जिसमें एसआइटी ने कारवाई की थी।
न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने जावेद असलम, लालमन, ओम प्रकाश पांडेय, मो. सरफराज अहमद व मुन्नर राम की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया। याचियों की ओर से दलील दी गई कि मामले में गलत तथ्य प्रस्तुत किए गए और एसआइटी ने भी विस्तृत जांच किए बिना 30 नवंबर 2022 को सरकार को रिपोर्ट सौंप दी।
एसआइटी SIT की 30 नवंबर 2022 की रिपोर्ट और इसके तहत राज्य सरकार की कारवाई समेत वर्ष 2019 में दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद करने का आग्रह किया गया था। प्राथमिकी गबन, जालसाजी, फर्जीवाड़ा के आरोपों में लखनऊ में दर्ज कराई गई थी। राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही ने याचिकाओं पर शुरुआती आपत्ति दर्ज की। दलील दी कि इस अपराधिक कारवाई को सीआरपीसी धारा 482 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती।
एसआइटी SIT की जांच में पता चला कि आजमगढ़ में 313 मदरसे निर्धारित मानकों के विपरीत चल रहे थे, जबकि 39 मदरसे अस्तित्व में ही नहीं थे। मदरसों की मान्यता के दस्तावेज भी नहीं मिले। इन मदरसों के आधुनिकीकरण के नाम पर ली गई रकम का गबन किया गया। यह तफ्तीश का मामला है। ऐसे में अपराध का राजफाश होने से एफआइआर FIR निरस्त नहीं की जा सकती।
अस्तु याचिकाएं खारिज करने योग्य हैं।