शादी करने का झूठा वायदा करके पीडिता से बलात्कार करने वाले आरोपी का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज –

Supreme Court of INDIA सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के आरोप में दर्ज एक एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि इस आशय का कोई आरोप नहीं है कि आरोपी द्वारा किया गया शादी का वादा शुरूआत से ही झूठा था।


आरोपी की एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी, जिसके बाद उसने शीर्ष अदालत से गुहार लगाई और दलील दी कि एफआईआर के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए बयान को पढ़ने से साफ संकेत मिलता है कि जब उसने इस रिश्ते में प्रवेश किया,तो उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था कि वह मामले की शिकायतकर्ता से शादी नहीं करना चाहता है और न ही यह सुझाव दिया जा सकता है कि उसका शादी करने का वादा झूठा था।


पीठ ने प्राथमिकी को देखने के बाद कहा कि (ए) अभियुक्त और पीड़िता/शिकायतकर्ता के बीच संबंध एक आपसी सहमति की प्रकृति का था; (बी) दोनों पक्षकार लगभग डेढ़ साल की अवधि के लिए रिश्ते में रहे थे; और (सी) इसके बाद, आरोपी ने शादी करने के लिए एक अनिच्छा व्यक्त की थी जिसके कारण प्राथमिकी दर्ज की गई थी।


इस मामले में, एफआईआर के अनुसार आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच शारीरिक संबंध बने और उनका यह रिश्ता लगभग डेढ़ साल की अवधि तक चला, इस दौरान उसने आरोपी के माता-पिता और बहन के साथ बातचीत भी की। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि आरोपी के माता-पिता उनकी शादी के लिए सहमत थे। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में उसने बताया कि ”अब, वह और उसके परिवार के सदस्य मेरे साथ शादी करने से इनकार कर रहे हैं” और उसकी ”एकमात्र शिकायत यह है कि सोनू मेरे साथ शादी करने से इनकार कर रहा है।”

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अदालत ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसले को भी संदर्भित किया जिसमें यह कहा गया था कि,
”उपरोक्त मामलों से उभरने वाली कानूनी स्थिति को संक्षेप में प्रस्तुत करने के लिए, धारा 375 के संबंध में एक महिला की ”सहमति” में प्रस्तावित एक्ट के प्रति एक सक्रिय और तर्कपूर्ण विचार-विमर्श शामिल होना चाहिए। यह स्थापित करने के लिए कि क्या ”सहमति” विवाह के वादे से उत्पन्न ”तथ्य की गलत धारणा” से विकृत थी, दो कथन स्थापित होने चाहिए। शादी का वादा एक झूठा वादा रहा होगा, जो गलत विश्वास के साथ दिया गया था और जिस समय यह वादा दिया गया था, उसी समय इसका पालन करने का कोई इरादा नहीं था। झूठा वादा अपने आप में तत्काल प्रासंगिकता का होना चाहिए, या यौन गतिविधि में शामिल होने के लिए महिला द्वारा लिए गए निर्णय के साथ इसकी प्रत्यक्ष सांठगांठ होनी चाहिए।”


अपील की अनुमति देते हुए पीठ ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता से शादी करने के लिए अभियुक्त की ओर से केवल बाद में इनकार किया गया था जिसके चलते प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पीठ ने यह भी कहा कि, ”उपरोक्त निर्णयों में स्थापित किए गए परीक्षणों को ध्यान में रखते हुए, हमारा विचार यह है कि अगर यह मान भी लिया जाए कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत रद्द करने की मांग करते हुए दायर किए गए आवेदन पर विचार करने के लिए एफआईआर के सभी आरोप सही हैं तो भी कोई अपराध स्थापित नहीं हुआ है। इस आशय का कोई आरोप नहीं है कि दूसरी प्रतिवादी को किया गया विवाह का वादा शुरुआत में झूठा था। इसके विपरीत, यह एफआईआर की सामग्री से प्रकट होता है कि अपीलकर्ता की ओर से बाद में दूसरी प्रतिवादी से शादी करने से इनकार कर दिया गया था जिसके चलते प्राथमिकी दर्ज करवाई गई थी।

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इन तथ्यों को देखने के बाद हमारा विचार है कि हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका पर विचार करने से मना करके गलती की थी,वो भी इस आधार पर कि यह केवल परीक्षण के साक्ष्य हैं जो इस बात का निर्धारण करेंगे कि क्या अपराध किया गया था?”

केसः सोनू उर्फ सुभाष कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य,आपराधिक अपील संख्या 233/2021
कोरमः जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह
प्रतिनिधित्वः एडवोकेट अमित पवन, एडवोकेट सीमांत कुमार, एडवोकेट विष्णु शंकर जैन

पीएस कोतवाली, जिला मथुरा में भारतीय दंड संहिता 18602 की धारा 376 के तहत 2008 का मामला अपराध संख्या 121

Sonu @ Subhash Kumar Vs. State of Uttar Pradesh & Anr.

[Criminal Appeal No. 233 of 2021 arising out of SLP (Crl) No. 11218 of 2019]

Case Crime No 121 of 2008 under Section 376 of the Indian Penal Code 18602 at PS Kotwali, District Mathura

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