सुप्रीम कोर्ट: इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि सिविल मामले को आपराधिक रंग देना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा-

SUPREME COURT सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान बिक्री विलेख का निष्पादन ‘लिस पेंडेंस’ के सिद्धांत ( Sale of the property is hit by the Doctrine of ‘Lis Pendens’ ) को आकर्षित कर सकता है

SUPREME COURT शीर्ष अदालत ने ALLAHABAD HIGH COURT इलाहाबाद उच्च न्यायलय के आदेश को पलटते हुए भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 420 में दर्ज आपराधिक मामले को यह कहते रद्द कर दिया कि कि ऐसी कार्यवाही को जारी रखना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, क्यूंकि इसमें ये दीवानी विवाद को आपराधिक मामले का रंग देने की कोशिश की गई।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की बेंच इलाहाबाद हाई कोर्ट के 10 अगस्त, 2021 के निर्णय को चुनौती देने वाली एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी।

आक्षेपित निर्णय में अपीलकर्ता द्वारा संहिता की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमे 12 फरवरी 2021 को प्रस्तुत आरोप पत्र, संज्ञान लेने का आदेश, और भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 420 के तहत दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की गयी थी।

9. Insofar as the appellant is concerned, none of the ingredients of the offence punishable under Section 420 of the IPC have been found to exist after the investigation was complete. Neither the FIR nor the harge-sheet contain any reference to the essential requirements underlying Section 420. In this backdrop, the continuation of the prosecution against the appellant would amount to an abuse of the process where a civil dispute is sought to be given the colour of a criminal wrong doing.

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अपील को अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच पूरी होने के बाद, अपीलकर्ता के मामले में IPC आईपीसी की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध की कोई भी सामग्री मौजूद नहीं पाई गई। न तो एफआईआर और न ही चार्जशीट में धारा 420 की बुनियादी शर्तों का कोई जिक्र नहीं है। इसके आलोक में अपीलकर्ता के विरुद्ध अभियोजन जारी रखना उस प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा जिसमें दीवानी विवाद को आपराधिक अधर्म का रंग दिया जाता है।

10. For the above reasons, we allow the appeal and set aside the impugned judgment and order of the Single Judge of the High Court of Judicature at Allahabad dated 10 August 2021. In consequence, the petition under Section 482 of CrPC will stand allowed by quashing the charge-sheet dated 12 February 2021, confined only to the appellant.

कोर्ट ने कहा कि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान बिक्री विलेख का निष्पादन लिस पेंडेंस के सिद्धांत ( sale of the property is hit by the doctrine of lis pendens ) को आकर्षित कर सकता है, लेकिन, चार्ज-शीट को पढ़ने से, यह स्पष्ट है कि आपराधिकता का कोई तत्व नहीं है। ऐसे मामले में आकर्षित हो सकता है जिसमें अनिवार्य रूप से अपीलकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के बीच एक नागरिक विवाद शामिल है।

केस टाइटल – सईद यासीर इब्राहिम वनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश और अन्य
केस नंबर – Criminal Appeal No 295 of 2022
कोरम – न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ न्यायमूर्ति सूर्यकांत

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