यदि सबूत की विश्वनीयता है और कोर्ट के विश्वास को प्रेरित करते हैं, तो बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि पीड़ित की एकमात्र गवाही पर की जा सकती है – HC

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बॉम्बे उच्च न्यायलय BOMBAY HIGH COURT ने फैसला सुनाया कि, यदि सबूत विश्वसनीय हैं और न्यायालय के विश्वास को प्रेरित करते हैं, तो दोषसिद्धि पीड़ित की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है।

न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वरले और न्यायमूर्ति श्रीकांत डी. कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि, पीड़िता की मानसिक स्थिति के बारे में पुलिस अधिकारी का केवल बयान ही सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं है।

प्रस्तुत मामले में अपीलकर्ता को मानसिक रोग से पीड़ित लड़की के साथ दुष्कर्म करने का दोषी पाया गया है. विद्वान अपर सत्र न्यायाधीश ने अपीलार्थी को रिकॉर्ड पर साक्ष्य और अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की और से दिए गए तर्क पर विचार करने के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 342 एवं 376 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध का दोषी पाया तथा आजीवन कारावास की सजा सुनाई और डिफ़ॉल्ट शर्त के साथ कुल 11,000/- रुपये का जुर्माना लगाया।

अपीलकर्ता के अधिवक्ता श्री एम.एम. खोखावाला ने कहा कि अभियोजन के मामले का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं है। डॉक्टर द्वारा एकत्र किए गए योनि स्वैब में कोई वीर्य नहीं पाया गया।

श्री एच.जे. डेढिया प्रतिवादी के वकील ने कहा कि भले ही इस मामले में पीड़ित की जांच नहीं की गई है, यह किसी भी तरह से अभियोजन मामले के लिए घातक नहीं है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि, यौन अपराध के मामले में पीड़िता की गवाही महत्वपूर्ण है और जब तक ऐसे बाध्यकारी कारण नहीं हैं जो किसी बयान की पुष्टि की तलाश में हैं, अदालतों को अकेले यौन उत्पीड़न के शिकार की गवाही पर कार्रवाई करने में कोई कठिनाई नहीं मिलनी चाहिए। आरोपी को सजा दिलाने के लिए।

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उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि, बलात्कार के एक मामले में पेश किए गए सबूतों की प्रकृति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि साक्ष्य विश्वसनीय है और न्यायालय के विश्वास को प्रेरित करता है, तो दोषसिद्धि पीड़ित की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन एजेंसी पर्याप्त सबूतों के अभाव में अपीलकर्ता के खिलाफ बलात्कार और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोप को साबित करने में विफल रही है।

तथ्यों के विवेचना उपरांत न्यायालय ने अपील स्वीकरण की अनुमति दी।

केस टाइटल – नंदलाल ज़गडू यादव बनाम महाराष्ट्र राज्य
केस नंबर – 2013 की आपराधिक अपील संख्या 1142
कोरम – न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वरले और न्यायमूर्ति
श्रीकांत डी. कुलकर्णी

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