शीर्ष अदालत ने कहा कि वादी के खिलाफ फैसला आने पर जजों पर आरोप लगाने का सिलसिला जारी रहा तो यह न्यायाधीशों का मनोबल गिराएगा। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने राजस्थान के धौलपुर के एक मामले को उत्तर प्रदेश के नोएडा की कोर्ट में स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया।
सर्वोच्च न्यायलय ने किसी मामले से संबंधित वादी के खिलाफ फैसला आने पर जज या न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आरोप लगाने की प्रवृत्ति की निंदा की है। शीर्ष कोर्ट ने राजस्थान के धौलपुर के एक मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वादी के खिलाफ फैसला आने पर जजों पर आरोप लगाने का सिलसिला जारी रहा तो यह न्यायाधीशों का मनोबल गिराएगा। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने राजस्थान के धौलपुर के एक मामले को उत्तर प्रदेश के नोएडा की कोर्ट में स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि जिन आधारों पर केस धौलपुर से नोएडा स्थानांतरित करने की मांग की गई है, उनमें से एक यह है कि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि उनकी निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो रही है और विरोधी पक्ष ‘बड़े लोग‘ होने के कारण केस को प्रभावित कर सकते हैं। जस्टिस शाह व कृष्ण मुरारी ने कहा कि हम इस तरह के रवैये और उस आधार की निंदा करते हैं जिस पर कार्यवाही स्थानांतरित करने की मांग की गई है।
न्यायिक पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोर्ट के कुछ आदेश दिए हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि न्यायिक पक्ष विरोधी पक्ष से प्रभावित हो गया। यदि याचिकाकर्ता किसी न्यायिक आदेश से व्यथित है तो उचित तरीका है कि उसे उच्च अदालतों में चुनौती दी जाए।
दो सितंबर को पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजकल यह प्रवृत्ति बढ़ गई है कि अपने पक्ष में फैसला नहीं आने पर संबंधित पक्ष न्यायिक अधिकारियों पर आरोप लगाने लगता है। हम इस प्रवृत्ति की निंदा करते हैं। यदि यह सिलसिला जारी रहा तो इसका असर अंततः जजों के मनोबल पर पड़ेगा।
याचिका में एक और आधार भी उठाया गया था कि परीक्षण अदालत ने झूठी एफआईआर के आधार पर वारंट जारी किया, इसलिए याचिकाकर्ताओं के जीवन को लेकर आशंका है।
उच्चतम न्यायलय ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता प्राथमिकी से व्यथित है तो उसे इसे रद्द कराने के लिए अदालत से संपर्क करना चाहिए। कोर्ट ने कहा की मामला स्थानांतरित करने का यह कोई आधार नहीं बनता है।