कॉलेजियम प्रणाली को और पारदर्शी बनाने पर कानून मंत्री ने कहा की, दुनियाभर में कहीं भी जज दूसरे जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं

कॉलेजियम प्रणाली को और पारदर्शी बनाने पर कानून मंत्री ने कहा की, दुनियाभर में कहीं भी जज दूसरे जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं

दुनियाभर में कहीं भी जज दूसरे जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं। जजों का मुख्य काम है न्याय देना, लेकिन मैंने नोटिस किया है कि आधे से ज्यादा समय जज दूसरे जजों की नियुक्ति के बारे में फैसले ले रहे होते हैं। इससे ‘न्याय देने’ का उनका मुख्य काम प्रभावित होता है- किरेन रिजिजू

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को लिखा गया पत्र सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की ‘सटीक अनुवर्ती कार्रवाई’ है।

विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए कि मौजूदा व्यवस्था न्यायिक नियुक्तियों में सरकार के हस्तक्षेप की कोशिश कर रही है, रिजिजू ने कहा कि 2015 के अपने फैसले में, शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने खुद (एमओपी) कॉलेजियम प्रक्रिया ज्ञापन के पुनर्गठन का निर्देश दिया था ।

रिजिजू ने उस मामले का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर, 2015 के फैसले में संविधान पीठ ने कहा था, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया था।

“भारत सरकार भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से इसे पूरक करके मौजूदा प्रक्रिया ज्ञापन को अंतिम रूप दे सकती है। भारत के मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले कॉलेजियम के सर्वसम्मत दृष्टिकोण के आधार पर निर्णय लेंगे।”

CJI चंद्रचूड़ की अगुआई वाले कॉलेजियम में 5 और सदस्य हैं।इनमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल हैं। पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एमओपी पुनर्गठन पर निर्णय लेते समय ध्यान में रखे जाने वाले कुछ कारकों/दिशानिर्देशों को भी तैयार किया था, जिसमें शामिल थे: पात्रता मानदंड, नियुक्ति में पारदर्शिता प्रक्रिया, सचिवालय, शिकायतें और अन्य विविध कारक।

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शीर्ष ‘पात्रता मानदंड’ के तहत, फैसले में कहा गया है, “प्रक्रिया का ज्ञापन कॉलेजियम (उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों के स्तर पर) के मार्गदर्शन के लिए पात्रता मानदंड, जैसे कि न्यूनतम आयु, का संकेत दे सकता है। समय-समय पर राज्य सरकार और भारत सरकार (जैसा भी मामला हो) के विचारों को आमंत्रित करने और विचार करने के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति”।

विशेष रूप से, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की दलील को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित किया गया था कि प्रक्रिया ज्ञापन का निर्माण एक प्रशासनिक जिम्मेदारी थी जो कार्यकारी डोमेन में आती थी और शीर्ष अदालत के पास न तो विशेषज्ञता थी और न ही संशोधनों का प्रस्ताव करने का साधन कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के लिए मौजूदा प्रक्रिया ज्ञापन (भारत सरकार द्वारा 30 जून 1999 को तैयार किया गया) में।

यह विवाद कब से और क्यों शुरू हुआ–

  1. जस्टिस रूमा पाल का बयान
    सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रूमा पाल ने करीब एक दशक पहले कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम प्रक्रिया ने ऐसी धारणा बनाई है कि आप मेरा बचाव करो, मैं आपका। कॉलेजियम प्रक्रिया से एक जज की उच्च अदालत में नियुक्ति होती है, यह प्रणाली देश के सबसे अच्छे रहस्यों में से एक है।
  2. जजों के नामों को मंजूरी में केंद्र की देरी
    केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को मंजूरी देने में देरी कर रही है। सरकार के पास कॉलेजियम की ओर से भेजी गईं करीब 104 सिफारिशें लंबित हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने सरकार से लंबित नामों को जल्द से जल्द निपटाने को कहा था।
  3. केंद्र और संवैधानिक संस्थाओं की टिप्पणी
    कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है। जबकि जजों की नियुक्ति करना सरकार का अधिकार है। रिजिजू ने कहा कि संविधान के मुताबिक जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है, लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना कॉलेजियम सिस्टम शुरू कर दिया।
  4. सुप्रीम कोर्ट का इस पर पक्ष कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जारी बयानबाजी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है। यह देश का कानून है और हर किसी को इसका पालन करना चाहिए। वहीं, जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है। यह रवैया अच्छे जजों का नाम वापस लेने के लिए मजबूर करता है।
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अब समझें सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम क्या है-

यह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अप्वाइंट किया जाता है। देश में कॉलेजियम सिस्टम साल 1993 में लागू हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में होते हैं पांच सदस्य-

कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। CJI इसमें प्रमुख होते हैं। इसके अलावा 4 मोस्ट सीनियर जज होते हैं। अभी इसमें 6 जज हैं। कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके नाम की सिफारिश केंद्र से करता है।

केंद्र के सुझाव और जजों की नियुक्ति पर दो बड़े सवाल-

पहला- क्या सुझाव मंजूर करेगा सुप्रीम कोर्ट?

मिडिया रिपोर्ट में कहा है कि कानून मंत्री के सुझाव को सुप्रीम कोर्ट मान ले, ऐसा मुश्किल है। CJI चंद्रचूड़ की अगुआई वाले कॉलेजियम में 5 और सदस्य हैं।इनमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल हैं। पहले इसमें सीजेआई के अलावा चार और जस्टिस थे। जिनमें कोई भी CJI का उत्तराधिकारी नहीं था। इसीलिए बाद में जस्टिस संजीव खन्ना को छठवें मेंबर के तौर पर कॉलेजियम में शामिल किया गया, जो कि CJI के उत्तराधिकारी हैं।

कॉलेजियम इस सुझाव को सुप्रीम कोर्ट सरकार की नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट (NJAC) लाने की सरकार की नई कोशिश के तौर पर देख रहा है। NJAC को 2015 में संसद में पास किया गया था, लेकिन अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था।

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दूसरा- केंद्र जजों के चयन में कैसा बदलाव चाहता है?

जिस NJAC को सुप्रीम कोर्ट 2015 में असंवैधानिक कह चुका है। उसमें जजों की नियुक्ति को लेकर कई बदलाव किए गए थे। इसमें NJAC की अगुआई CJI को करनी थी। इनके अलावा 2 सबसे वरिष्ठ जजों को रखा जाना था। इनके अलावा कानून मंत्री और 2 प्रतिष्ठित लोगों को NJAC में रखे जाने की व्यवस्था थी। प्रतिष्ठित लोगों का चयन प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और CJI के पैनल को करने की व्यवस्था थी। अभी जजों की नियुक्ति पर रिजिजू का पत्र ऐसी ही व्यवस्था के लिए माना जा रहा है।

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