एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 67 के तहत दर्ज इकबालिया बयान स्वीकारने योग्य नहीं है – सुप्रीम कोर्ट

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शीर्ष अदालत Supreme Court ने पुनः दोहराया कि एनडीपीएस एक्ट NDPS Act की धारा 67 Sec 67 के तहत दर्ज इकबालिया बयान एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराध के मुकदमे में अस्वीकार्य रहेगा।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो Narcotics Control Beuro की ओर से दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें धारा 8 (सी), 8 ए सहपठित धारा नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 20 (बी), 21, 22, 27 ए, 27 बी, 28 और 29 के तहत दंडनीय अपराधों के आरोपी व्यक्तियों को कर्नाटक उच्च न्यायलय Karnataka High Court द्वारा जमानत पर रिहा करने के आदेशों को चुनौती दी गई थी।

अदालत ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत दर्ज अभियुक्तों/सह-अभियुक्तों के स्वैच्छिक बयानों को छोड़कर, गिरफ्तारी के समय अभियोजन पक्ष के पास आरोपियों को उनके खिलाफ लगे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोपों से जोड़ने के लिए कोई ठोस सामग्री उपलब्ध नहीं थी।

उच्चतम न्यायलय ने हाईकोर्ट के आदेशों (एक आरोपी के आदेश को छोड़कर) में दखल देने से किया इंकार-

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि “10. यह तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य (2021) 4 एससीसी 1 में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत दर्ज एक इकबालिया बयान एनडीपीएस एक्ट के तहत एक अपराध के मुकदमे में अस्वीकार्य रहेगा। उक्त निर्णय के तहत, याचिकाकर्ता-एनसीबी द्वारा प्रतिवादियों या सह-अभियुक्तों के स्वीकारोक्ति/स्वैच्छिक बयानों के आधार पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत की गई गिरफ्तारी, आक्षेपित आदेश पलटने का आधार नहीं बन सकती है। कुछ अभियुक्तों का सीडीआर विवरण या प्रतिवादियों में से किसी एक की ओर से सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप एक पहलू है, जिसकी ट्रायल के स्तर पर जांच की जाएगी।”

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एक आरोपी के बारे में, अदालत ने यह पाया कि उसे 16 जून, 2019 को गिरफ्तार किया गया था और उसके किराए के आवास से पर्याप्त मात्रा में नशीली दवाओं की बरामदगी के संबंध में उसके खिलाफ विशेष आरोप लगाए गए हैं।

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा उक्त आरोपी के लिए दायर अपील को अनुमति देते हुए पीठ ने कहा, “हमारा दृढ़ मत है कि ए -2 पूर्वोक्त सह-आरोपियों के साथ समानता की मांग नहीं कर सकता है और एक्ट की धारा 37 के मद्देनजर उसे ऐसा कोई लाभ नहीं दिया जा सकता था जब उसके पास मनोदैहिक पदार्थों की वाणिज्यिक मात्रा पाई गई है।”

केस टाइटल – स्टेट बाय (एनसीबी) बेंगलुरु बनाम पल्लुलाबिद अहमद अरिमुट्टा
केस नंबर – एसएलपी (सीआरएल) 1569
कोरम – मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हेमा कोहली

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