राजस्थान में बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन पर वाद विवाद बढ़ने के कारण मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट-

राजस्थान में बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन पर वाद विवाद बढ़ने के कारण मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट-

राजस्थान सरकार ने विगत दिनों एक विवादित कानून पास किया था. ये कानून बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन से जुड़ा था.

पास विवादित कानून के तहत अब राजस्थान में बाल विवाह का भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकेगा. इस कानून का विधानसभा में तो विरोध हुआ ही था और अब कानूनी चुनौती भी मिलने वाली है.

नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स यानी NCPCR का कहना है कि वो राजस्थान के इस कानून का विरोध करेगा. NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का कहना है कि वो 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देने वाले कानून का विरोध करेंगे.

राजस्थान के इस कानून को रद्द करने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायलय में याचिका भी दायर हुई है, जिसमें NCPCR को भी पार्टी बनाया गया है. प्रियंक कानूनगो का कहना है कि वो अदालत में इस कानून का विरोध करेंगे. उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार का ये कानून चाइल्ड मैरिज एक्ट और पॉक्सो एक्ट का उल्लंघन करता है.

विगत शुक्रवार को ही पास हुआ था कानून-

राजस्थान सरकार ने इस विवादित कानून को बीते शुक्रवार (17 सितंबर) को विधानसभा में पास कराया है. प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारवाल ने इसे सदन में रखते हुए दावा किया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत बाल विवाह को रजिस्टर्ड करने की अनुमति दी जा रही है.

इस कानून में प्रावधान है कि अगर शादी के वक्त लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल है, तो उनके माता-पिता को 30 दिनों के भीतर इस शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. इस पर बीजेपी विधायक और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का कहना था कि बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन करना, इसे कानूनी मान्यता देने जैसा है. इसके जवाब में शांति धारवाल ने कहा था कि वो सिर्फ रजिस्ट्रेशन करने को कह रहे हैं, कानूनी मान्यता नहीं दे रहे हैं.

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देश में तेजी से बढ़ रहे हैं बाल विवाह के मामले-

हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के मुकाबले 2020 में बाल विवाह के मामलों में करीब 50% बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में देशभर में बाल विवाह के 785 मामले सामने आए हैं. उससे पहले 2019 में 523 और 2018 में 501 केस प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत दर्ज हुए थे.

वहीं, 2017 में इस एक्ट के तहत 395, 2016 में 326 और 2015 में 293 केस दर्ज हुए थे. भारतीय संविधान के मुताबिक, अगर 21 साल की उम्र से पहले लड़के या 18 साल की उम्र से पहले लड़की की शादी होती है तो उसे बाल विवाह माना जाएगा.

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