बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्नी की हत्या के मामले में एक शख्स की सजा घटा दी। दरअसल, इस शख्स को उम्रकैद की सजा मिली थी, जिसे बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आठ साल कर दिया। अदालत का कहना था कि शख्स ने इरादतन अपनी पत्नी की हत्या नहीं की। वह अपनी पत्नी की जान नहीं लेना चाहता था, लेकिन मूसल लगने से उसकी मौत हो गई। बता दें कि दोषी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी। उसने बताया था कि उसकी पत्नी ससुराल लौटने और मामला सुलझाने के लिए तैयार नहीं थी। ऐसे में उसके हाथ में जो आया, उससे अपनी पत्नी को पीटना शुरू कर दिया।
हाई कोर्ट के फैसले का ये रहा आधार-
न्यायमूर्ति सारंग वी. कोतवाल और न्यायमूर्ति श्रीमती साधना एस. जाधव ने माना कि ऐसी परिस्थितियों में शामिल भावनाओं को ध्यान में रखे बिना अपराध पर विचार नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि शख्स ने खुद पर नियंत्रण खो दिया और गुस्से में अपनी पत्नी पर हमला कर दिया। वह उसकी हत्या नहीं करना चाहता था।
अपने निर्णय में माननीय न्यायमूर्ति ने सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय का भी हवाला लिया – उत्तर प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी AIR 1998 SC1007.
“The law is that burden of proving such an exception is on the accused. But the mere fact that accused adopted another alternative defence during his examination under Section 313 of the Cr. P.C. without referring to Exception No. 1 of Section 300 of IPC is not enough to deny him of the benefit of the Exception, if the Court can cull out materials from evidence pointing to the existence of circumstances leading to that exception. It is not the law that failure to set up such a defence would foreclose the right to rely on the exception once and for all. It is axiomatic that burden on the accused to prove any fact can be discharged either through defence evidence or even through prosecution evidence by showing a preponderance of probability.”
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले को गैर इरादतन हत्या करार दिया और दोषी को आठ साल की सख्त सजा सुनाई, जो की निम्नवत है-
ORDER
(i) The appeal is partly allowed.
(ii) The conviction and sentence imposed upon the appellant for offence punishable under section 302 of the Indian Penal Code by Additional Sessions Judge, Islampur in Sessions Case No. 42 of 2015 vide Judgment and Order dated 27/10/2016 is set aside. The appellant is acquitted of the offence punishable under section 302 of the Indian Penal Code.
(iii) Instead, the appellant is convicted for offence punishable under section 304 Part I of the Indian Penal Code and sentenced to suffer R.I. for 8 years. Sentence of fine is maintained.
(iv) The appellant is in jail. He is entitled to the set off for the period already undergone.
(v) The appeal is disposed of accordingly.
(vi) In view of disposal of the appeal, nothing survives in the Interim Application. The same is disposed of accordingly.
2016 में दोषी को मिली थी उम्रकैद–
जानकारी हो कि अक्तूबर 2016 के दौरान इस्लामपुर की सत्र अदालत ने अंकुश कृष्णा चव्हाण को दोषी करार दिया था और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उस वक्त अदालत ने माना था कि अंकुश ने इरादतन अपनी पत्नी का कत्ल किया। इसके खिलाफ दोषी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी। इस मामले में न्यायाधीश साधना जाधव और न्यायाधीश सारंग कोटवाल की खंडपीठ ने सुनवाई की।
दोषी के अधिवक्ता ने पेश की यह दलील-
अंकुश कृष्णा चव्हाण के अधिवक्ता लोकेश जादे ने बहस के दौरान कहा कि महिला अपनी ससुराल छोड़कर चली गई थी और अपनी बहन के घर में रह रही थी। अंकुश अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए साली के घर गया था, लेकिन महिला ने ससुराल लौटने से साफ इनकार कर दिया। गुस्से में अंकुश ने उस पर मूसल से वार कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।
केस टाइटल : अंकुश कृष्णा चव्हाण बनाम महाराष्ट्र राज्य
CRIMINAL APPEAL NO. 797 OF 2016 WITH INTERIM APPLICATION NO. 980 OF 2020
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