‘मैरिटल बलात्कार’ धारा 376 और ‘दहेज प्रताड़ना कानून’ धारा 498A का इस्तेमाल हिसाब चुकता करने के लिए हो रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई-

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Misuse of IPC SEC 376 & 498A – भारतीय दंड संहिता की धारा 498 A विवाहिता स्त्रियों के साथ ससुराल में क्रूरता के मामले में लगाई जाती है। दहेज उत्पीड़न और दहेज के लिए हत्याओं के मामलों को देखते हुए 1983 में आईपीसी में धारा 498A शामिल की गई थी।

विगत दिनों न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर धारा 498-ए के ‘दुरुपयोग’ पर चिंता व्यक्त की है। पीठ ने बिहार में एक महिला की ओर से उसके ससुराल वालों के खिलाफ कथित तौर पर क्रूरता के लिए दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ स्पष्ट आरोपों के अभाव में मुकदमा चलाने की अनुमति देने से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

जानकारी हो की दिल्ली के रहने वाले 33 साल के सुशील (बदला हुआ नाम) के मोबाइल नंबर पर पिछले महीने एक दिन लोकल पुलिस स्टेशन से फोन आता है। उन्हें बताया जाता है कि एक महिला ने उनके खिलाफ कुछ शिकायत की है। कैसी शिकायत है, ये नहीं बताया जाता है। जब सुशील थाने पहुंचते हैं तो पुलिस उन्हें रेप के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है। उनकी मां पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही होती है लेकिन अग्रिम जमानत मिल जाने से वह जेल जाने से बच जाती हैं।

कहने को ते ये रेप से जुड़ा मामला है लेकिन ये भारत में दहेज उत्पीड़न (Harassment for dowry) और घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से जुड़े कानूनों के दुरुपयोग का जीता-जागता उदाहरण है। क्यों और कैसे, ये आगे समझते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने भी एक अलग मामले की सुनवाई के दौरान आईपीसी की धारा 498-A के दुरुपयोग (Misuse of IPC section 498 A) को लेकर बेहद तल्ख टिप्पणियां की हैं।

पति-पत्नी में विवाद। धीरे-धीरे दूरियां। फिर ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए कानून का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना। पति, सास, ससुर, देवर, ननद सब जेल में। कभी-कभी तो पति के रिश्तेदार माता-पिता सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और आत्महत्या तक कर लेते हैं। दहेज उत्पीड़न से जुड़ी आईपीसी की धारा 498 A के दुरुपयोग की यही कहानी है। ससुराल वालों को सबक सिखाने और प्रताड़ित करने के लिए 498 A के साथ-साथ आईपीसी की धारा 376 (RAPE DEFINED) तक का इस्तेमाल होने लगा है।

पति के साथ झगड़ा फंसा पूरा परिवार-

सुशील के मामले में शिकायतकर्ता कोई और नहीं बल्कि उनके बड़े भाई से अलग रह रही उनकी पत्नी हैं। शिकायतकर्ता महिला और सुशील के भाई की 2006 में शादी हुई। कुछ महीने बाद ही दंपती में अनबन होने लगी। अक्टूबर 2007 में महिला ने पति समेत ससुराल वालों पर दहेज के लिए उत्पीड़ित करने का आरोप लगाया। मई 2008 में महिला ने पति, सास और देवर (सुशील) के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दर्ज कराया। 2011 में महिला ने आरोपों को वापस ले लिया लेकिन रिश्तों में खटास बरकरार रही।

2016 में रोहिणी की महिला कोर्ट ने पति को हर महीने 15 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। पति-पत्नी अलग-अलग रहने लगे। पति हर महीने 15 हजार रुपये देता रहा। महिला के ससुरालियों का आरोप है कि महिला कुछ महीनों से और ज्यादा पैसे की मांग करने लगी थी। ऐसा नहीं होने पर सबक सिखाने की बात कहती थी। पति से अलग रहने के करीब 6 साल बाद अचानक महिला ने अपने देवर (सुशील) के खिलाफ रेप का आरोप लगा दिया। सुशील गिरफ्तार कर लिया गया और करीब एक महीने बाद उसे SESSION COURT निचली अदालत से BAIL जमानत मिल पाई।

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शिकायत में न कथित अपराध वाले दिन, समय या जगह का जिक्र-

महिला ने सुशील के खिलाफ पुलिस को दी अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि उसने उसके साथ ‘गलत काम’ किया था और वह लोकलाज की वजह से चुप रही थी। शिकायत में इसका तब जिक्र नहीं था कि कथित रेप कब और कहां हुआ। सुशील ने जमानत के लिए दलील दी कि महिला ने न तो 2007 के केस में कथित यौन उत्पीड़न का जिक्र किया, न ही 2008 में घरेलू हिंसा से जुड़ी शिकायत में इसका जिक्र किया। पति-पत्नी के बीच कानूनी विवाद के दौरान महिला ने कभी भी खुद के साथ कथित यौन उत्पीड़न का जिक्र नहीं किया था। सुशील के वकील प्रशांत मनचंदा ने कोर्ट में दलील दी कि उनके मुवक्किल को फर्जी रेप केस में फंसाया गया है। आखिरकार कोर्ट ने सुशील को जमानत दे दी।

498A का इस्तेमाल हिसाब किताब चुकता करने के लिए हो रहा है-

मनचंदा कहते हैं, ‘IPC (आईपीसी) की धारा 498A के तहत पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ फर्जी मामलों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार मामले में दिए अपने फैसले में इस तरह के मामलों में बेगुनाह पति और उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन दिया था। कोर्ट ने कहा था कि 498A पीड़ित महिला के लिए शील्ड है और उसका हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना गलत है। लेकिन उस फैसले के बाद भी इस धारा का दुरुपयोग हो रहा है। यहां तक कि पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ रेप जैसे गंभीर आरोप तक लगाए जा रहे हैं ताकि पूरे परिवार को परेशान किया जा सके। ऐसे मामलों में फैमिली मेंबर गिरफ्तार भी हो रहे हैं। कानून ढाल की तरह हैं, इनका दुरुपयोग करते हुए बेगुनाहों के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल पर रोक लगनी ही चाहिए।’

498 A का दुरुपयोग-

सुशील का मामला कानून के दुरुपयोग का कोई इकलौता मामला नहीं है। दहेज लेना या देना कानूनन तो अपराध है ही, सामाजिक रूप से भी ये बहुत बड़ा पाप है। ये हकीकत है कि देश में आज भी हजारों, लाखों महिलाओं को दहेज को लेकर यातनाएं सहनी पड़ती हैं। यहां तक कि उनकी हत्या भी कर दी जाती है। दहेज उत्पीड़न को रोकने के लिए ही आईपीसी में 498A का प्रावधान किया गया है। लेकिन इस कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर तल्ख टिप्पणी कर चुका है। डॉक्युमेंट्री फिल्म मेकर और ऐक्टिविस्ट दीपिका नारायण भारद्वाज 498A के दुरुपयोग के खिलाफ अलख जला रही हैं। उन्होंने इसे लेकर ‘मार्टर्स ऑफ मैरिज’ नाम से डॉक्युमेंट्री फिल्म भी बनाई हैं। भारद्वाज कहती हैं, ‘दुरुपयोग के मामलों को आप ये कहकर नहीं खारिज कर सकते कि ये गिने-चुने हैं। मेरे पास सैकड़ों की तादाद में ऐसे पुरुष मदद मांग चुके हैं जिन्हें कथित तौर पर झूठे केस में फंसाया गया है।’

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मैरिटल बलात्कार और धारा 498A-

मैरिटल बलात्कार के मामले में भी यही आशंका जताई जा रही है कि अगर इसे आपराधिक बनाया गया तो इसका भी 498A की तरह बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा सकता है। दीपिका नारायण भारद्वाज कहती हैं, ‘भारत में इस वक्त वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार के कानून को लेकर बात हो रही है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को सिर्फ दो हफ्ते दिए हैं इस पर अपना मत देने के लिए। ये केस बताता है की किस तरह बलात्कार की धारा का पारिवारिक विवादों में दुरुपयोग हो रहा है और सवाल भी उठाता है कि अगर कानून आ गया तो पतियों को इस तरह के झूठे इल्ज़ामों से कौन बचाएगा। FIR में सिर्फ एक लाइन की वजह से इस इंसान को बलात्कारी बना दिया गया और जेल में डाल दिया गया। कौन इसकी भरपाई करेगा?’

वहीं मैरिटल रेप (MARITAL RAPE) को अपराध की श्रेणी में रखने या न रखने के मामले को लेकर चल रही सुनवाई में केंद्र सरकार (Central Government) ने स्पष्ट रुख अपनाते हुए कहा है कि हम इस मामले में आंख मूंदकर पश्चिमीकरण का अनुसरण (westernization) नहीं कर सकते। CENTRAL GOVERNMENT केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट Delhi High Court में चल रही सुनवाई के दौरान कहा है कि पश्चिम के कई देशों ने मैरिटल रेप (MARITAL RAPE) को अपराध (Criminalize) की श्रेणी में रखा है, इसका यह मतलब नहीं है कि भारत भी आंख मूंदकर इसका अनुसरण कर लें। केंद्र ने कहा, हमारा देश विशाल विविधताओं से भरा देश है और इसमें हमारी अपनी समस्याएं हैं। साक्षरता, महिलाओं में आर्थिक सशक्तिकरण का अभाव, समाज का चरित्र, गरीबी जैसे कई कारक है, जिनपर मैरिटल रेप को अपराध बनाने से पहले विचार करने की आवश्यकता है।

क्या है 498 A-

INDIAN PENAL CODE की धारा 498A शादीशुदा महिला के साथ ससुराल में क्रूरता के मामले में लगाई जाती है। दहेज उत्पीड़न और दहेज के लिए हत्याओं के मामलों को देखते हुए 1983 में आईपीसी में धारा 498A शामिल की गई थी। ये एक गैरजमानती धारा है। इसका मुख्य उद्देश्य महिला को पति या उसके रिश्तेदारों की प्रताड़ना से बचाना था। अगर किसी पति या उसके रिश्तेदार महिला का उत्पीड़न करते हैं तो उन्हें 3 साल तक की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकती है।

धारा किसी महिला पर उसके पति या ससुराल वालों की तरफ से हो रही प्रताड़ना पर लागू होती है। पति या पति के रिश्तेदार अगर महिला पर क्रूरता करते हैं तो उनके खिलाफ इस धारा का इस्तेमाल होता है। इस धारा के तहत ‘क्रूरता’ मानी जाती है-

1- ऐसा कृत्य जो महिला को आत्महत्या के लिए उकसाता हो या उसकी जान के लिए खतरा हो या उसे गंभीर चोट पहुंचाता हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हो

2- महिला से प्रॉपर्टी या मूल्यवान चीजों की गैरकानूनी डिमांड करना और मांग पूरी न होने पर उसका उत्पीड़न करना

2014 में SUPREME COURT सुप्रीम कोर्ट में अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार मामले में 498 A के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि धारा 498 A का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसके तहत झूठे केस दर्ज किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी न हो, बल्कि जांच-पड़ताल के बाद अगर आरोपों में दम दिखे तभी गिरफ्तारी हो।

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सुप्रीम कोर्ट की ताजा सख्त टिप्पणी-

SUPREME COURT सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को दहेज प्रताड़ना मामले में बड़ा आदेश दिया है। उसने कहा है कि 498A (दहेज प्रताड़ना) मामले में पति के रिलेटिव के खिलाफ स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। शीर्ष न्‍यायालय के अनुसार, पति के रिश्तेदार (महिला के ससुरालियों) के खिलाफ सामान्‍य और बहुप्रयोजन वाले आरोप के आधार पर केस चलाया जाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस तरह केस नहीं चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के ससुरालियों के खिलाफ चल रहे दहेज प्रताड़ना के केस को खारिज कर दिया। दहेज उत्पीड़न से जुड़े कानूनी प्रावधानों का पति के रिश्तेदारों की घसींटने के लिए हो रहे दुरुपयोग का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अदालतों को इस तरह की शिकायतों के मामले में बहुत सावधानी बरतनी होगी।

महिला ने पति के रिश्तेदारों को फंसाया-

महिला के पति और उसके रिलेटिव (ससुरालियों) के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज किया गया था। FIRST INFORMATION REPORT (FIR) और कानूनी कार्रवाई खारिज करने के लिए पति और उसके रिश्तेदारों ने PATANA HIGH COURT पटना हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में पति के रिश्तेदारों यानी महिला के ससुरालियों ने अर्जी दाखिल कर क्रिमिनल केस खारिज करने की गुहार लगाई। याचिका में कहा गया कि उन्हें प्रताड़ित करने के लिए यह केस दर्ज किया गया है। वहीं महिला का आरोप था कि उसे दहेज के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सवाल यह है कि क्या पति के रिश्तेदारों यानी महिला के ससुरालियों के खिलाफ जनरल और बहुप्रयोजन वाले आरोप को खारिज किया जाए या नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने क्‍या कहा?

SUPREME COURT सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि दहेज प्रताड़ना का कानून महिलाओं को दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए बनया गया है। लेकिन, यह भी सही है कि हाल के सालों में विवाहिक विवाद काफी बढ़े हैं। शादी के संबंध में कई मामले में काफी तनाव देखने को मिला है। इस कारण इस बात की प्रवृत्ति बढ़ी है कि अपना स्कोर सेटल करने के लिए पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना कानून का इस्तेमाल टूल की तरह हो रहा है।

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