उच्चतम न्यायलय Supreme Court ने कहा है कि पूर्व निर्णीत फैसले पर विचारोपरांत उसके पृथक फैसले हाईकोर्ट High Court पर बाध्यकारी होते हैं।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना के बेंच ने कहा कि देश में उच्च न्यायालयों द्वारा इस शीर्ष न्यायलय के बाध्यकारी दृष्टांतों का पालन नहीं करना ‘संविधान के अनुच्छेद 141’ के विपरीत है ।
प्रस्तुत मामले में, कर्नाटक उच्च न्यायलय ने भूमि अधिग्रहण के कुछ दावों में एक संदर्भ न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और अवार्ड को रद्द कर दिया तथा मामले को अपने पास वापस ले लिया।
कर्नाटक उच्च न्यायलय ने ऐसा करते समय, हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करने के लिए मुख्य रूप से शीर्ष अदालत के दो निर्णयों- ‘हिमालयन टाइल्स एंड मार्बल (पी) लिमिटेड बनाम फ्रांसिस विक्टर काउंटिन्हो (मृत) कानूनी प्रतिनिधि के जरिये, (1980) 3 एससीसी 223’ और ‘यूपी आवास एवं विकास परिषद बनाम ज्ञान देवी (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये (1995) 2 एससीसी 326’ – पर भरोसा जताया कि केआईएडीबी का आवंटी होने के नाते एमआरपीएल को भूमि अधिग्रहण का अलॉटी नहीं कहा जा सकता, बल्कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया का लाभार्थी केआईएडीबी है, न कि एमआरपीएल है और भूमि अधिग्रहण द्वारा प्रदान की गई राशि अधिकारी को केआईएडीबी द्वारा जमा किया गया था, इसलिए एमआरपीएल को ‘हितबद्ध व्यक्ति’ नहीं कहा जा सकता है।
हाईकोर्ट ने ‘पीरप्पा हनमंथा हरिजन बनाम कर्नाटक सरकार, (2015) 10 एससीसी 469’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के बाद के फैसले पर निर्भरता को नजरअंदाज कर दिया था, जिसमें यह माना गया था कि एक अलॉटी कंपनी को लाभार्थी या मुआवजे के निर्धारण से पहले सुनवाई के लिए हकदार “इच्छुक व्यक्ति” नहीं कहा जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ‘पीरप्पा हनमंथा हरिजन (सुप्रा)’ मामले में ‘यूपी आवास एवं विकास परिषद (सुप्रा)’ और हिमालयन टाइल्स एंड मार्बल (प्रा.) लिमिटेड (सुप्रा)’ के निर्णयों पर विचार किया गया और इतरनिर्णय दिया गया। इसमें यह कहा गया है कि यूपी आवास एवं विकास परिषद (सुप्रा) और हिमालयन टाइल्स एंड मार्बल (प्रा.) लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में दिया गया निर्णय केआईएडी अधिनियम, 1966 के तहत अधिग्रहण के संबंध में लागू नहीं होंगे।
” इस प्रकार, यह हाईकोर्ट के लिए यह कहते हुए पीरप्पा हनमंथ हरिजन (सुप्रा) के मामले में इस कोर्ट के बाध्यकारी निर्णय का पालन न करने का कारण नहीं था कि पीरप्पा हनमंथ हरिजन (सुप्रा) मामले में बाद के निर्णय में, पहले यूपी आवास एवं विकास परिषद (सुप्रा) और हिमालयन टाइल्स एंड मार्बल (प्रा.) लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में निर्णयों पर विचार नहीं किया गया है।
कर्नाटक उच्च न्यायलय ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि पीरप्पा हनमंथा हरिजन (सुप्रा) के मामले में फैसला देते समय इस कोर्ट ने यूपी आवास एवं विकास परिषद (सुप्रा) और हिमालयन टाइल्स एंड मार्बल (प्रा.) लिमिटेड (सुप्रा) के फैसलों पर विचार किया था और स्पष्ट रूप से इसमें अंतर किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कोर्ट के बाध्यकारी दृष्टांतों का पालन हाईकोर्ट द्वारा न करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के विपरीत है। बाद का निर्णय होने के नाते, जिसमें पहले के निर्णयों पर विचार किया गया और इस कोर्ट द्वारा इतर निर्णय दिया गया, इसलिए इस कोर्ट के बाद का निर्णय हाईकोर्ट पर बाध्यकारी था।”
अदालत ने आगे देखा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 Land Aquisition Act 1894 के तहत अधिग्रहण और केआईएडी अधिनियम, 1966 KIAD Act 1966 के तहत अधिग्रहण दोनों अलग-अलग हैं और दोनों अधिनियमों के प्रावधान अलग-अलग हैं।
पीठ ने अपील की अनुमति देते हुए कहा, “हम पीरप्पा हनमंथा हरिजन (सुप्रा) मामले में इस कोर्ट द्वारा अपनाये गये दृष्टिकोण से अलग दृष्टिकोण लेने का कोई कारण नहीं देखते हैं कि केआईएडीबी द्वारा भूमि अधिग्रहण के बाद का अलॉटी होने के नाते एमआरपीएल को न ही लाभार्थी कहा जा सकता है, न ही मुआवजे के निर्धारण के उद्देश्य से ‘कोई हितबद्ध व्यक्ति’।”
केस टाइटल – ग्रेगरी पतराओ बनाम मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड
केस नंबर – सीए 4105-4107/2022
कोरम – न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना