बलात्कार का अपराध (भारतीय दंड संहिता की धारा 376) और दूसरा गाली-गलौज और धमकियां, जिससे अपमान और धमकाने का अपराध होता है (धारा 504/506 आईपीसी), चाक और पनीर की तरह होते हैं-
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने पाया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और धारा 504 और 506 के तहत अपराध सीआरपीसी की धारा 200 के तहत परीक्षण के उद्देश्य के लिए ‘एक ही परिणति के रूप में जुड़े कृत्यों की एक श्रृंखला’ के दायरे में नहीं आएगा।
“जिस भी कोण से हम मामले की जांच करते हैं, दिए गए तथ्यों के क्रम में, कथित कृत्यों को एक साथ जोड़ना मुश्किल है। इसे एक साधारण मुहावरे में रखने के लिए, दो कथित कृत्यों में से एक यौन शोषण, जिससे बलात्कार का अपराध (भारतीय दंड संहिता की धारा 376) और दूसरा गाली-गलौज और धमकियां, जिससे अपमान और धमकाने का अपराध होता है (धारा 504/506 आईपीसी), चाक और पनीर की तरह होते हैं; वो एक साथ तो है किन्तु उन्हें एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।”
मामले का तथ्य और इतिहास-
उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करने वाले आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की गई थी, जिसने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के आरोपी को आरोपमुक्त कर दिया था। साथ ही साथ सत्र न्यायाधीश के आदेश ने अभियोजन पक्ष को आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत अपराधों के संबंध में मामले को स्थानांतरित करते हुए आरोपी के खिलाफ उपयुक्त अदालत में केस चलने की स्वतंत्रता प्रदान की।
सत्र न्यायाधीश द्वारा यह पाया गया कि –
“जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि आईपीसी की धारा 376 के तहत कथित अपराध की घटना का स्थान दिल्ली में है। बलात्कार का अपराध हमेशा होने वाला अपराध नहीं है और जो भी हो आरोप है कि आरोपी ने पीड़िता को फोन पर धमकी दी थी और यह एक तरह का अपराध नहीं है जिसे अपराधों की श्रृंखला में कहा जा सकता है।”
इस निर्णय से व्यथित होकर अपीलार्थी ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
मुख्य मुद्दा –
क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और धारा 504 और 506 के तहत अपराध सीआरपीसी की धारा 200 के तहत परीक्षण के उद्देश्य के लिए ‘एक ही परिणति के रूप में जुड़े कृत्यों की एक श्रृंखला’ के दायरे में आते है?
अपीलकर्ता के वकील ने सीआरपीसी की धारा 178, 179 और 200 और सतविंदर कौर बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) NR (1999) के आधार पर, धारा 376, 504 और 506 के तहत अपराधों को अलग करना एक न्यायिक अपराध होगा।
राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि सत्र न्यायाधीश के आदेश के आधार पर आरोपों को अलग करने पर धारा 504 और 506 के तहत मुकदमा सीआरपीसी की धारा 461 (आई) के आधार पर हो जाएगा। उसी के एवज में यह प्रस्तुत किया गया था कि आरोपी के खिलाफ धारा 376, 504 और 506 आईपीसी के तहत एक नया मुकदमा शुरू किया जाना पड़ेगा।
प्रतिवादी के अभियुक्त वकील ने तर्क दिया कि –
सत्र न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 218 के मद्देनजर आरोपों को अलग करने का आदेश दिया है, जिसके अनुसार अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग आरोप तय किए जाने हैं, अलग से मुकदमा चलाया जाना है।
बेंच ने कहा कि अधिवक्ताओ द्वारा उद्धृत मिसालें वर्तमान मामले पर लागू नहीं होंगी क्योंकि ऐसा कोई अपराध नहीं है जिसमें द्विभाजित या निरंतर कार्य शामिल हों। कोर्ट ने यह भी नोट किया गया कि “अपीलकर्ता द्वारा की गई शिकायत विभिन्न अपराधों, विभिन्न प्रकृति और घटना के विभिन्न स्थानों के आरोपों की है, हालांकि कहा जाता है कि यह एक ही व्यक्ति, यानी प्रतिवादी संख्या 2 और के खिलाफ किया गया है। एक ही व्यक्ति, यानी अपीलकर्ता और उनकी उत्पत्ति प्रस्तावित वैवाहिक गठबंधन में, जो अमल में नहीं आया।”
कोर्ट ने ‘मोहन बैठा और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य’ और ‘अंजू चौधरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2013)’ के निर्णयों में इस मामले से सम्बन्ध नहीं है। जहा तक समय की निकटता, एकता या स्थान की निकटता, कार्रवाई की निरंतरता आदि जैसे कई कारक हैं, जो इस सवाल को निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं कि क्या कृत्यों की एक श्रृंखला एक ही क्रम को बनाने के लिए एक साथ जुड़ी हुई है।
अदालत द्वारा यह नोट किया गया था कि इस मामले में, “विचाराधीन कार्य न तो समय के निकट थे और न ही निकटस्थ थे।”
अंततः बेंच द्वारा सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को टिकाऊ पाया गया और इस तरह अपील खारिज कर दी गई। यह भी माना गया कि आरोपी पर फिर से धारा 504 और 506 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि उस पर मुकदमा चलाया गया और उसे बरी कर दिया गया।
केस टाइटल – Ms P Vs STATE OF UTTARAKHAND & ANR.
केस नंबर – CRIMINAL APPEAL NO. 903 OF 2022
कोरम – न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ