Attorney General KK Venugopal on Tuesday urged the Supreme Court to overturn a Bombay High Court decision that held that “skin-to-skin contact” between an accused and a minor was necessary to establish a case under the Protection of Children from Sexual Offences Act-2012, commonly known as POCSO Act-2012.
बच्चों के साथ यौन अपराधों को लेकर बीते दिनों बॉम्बे हाईकोर्ट ने जो फैसले सुनाए, उनके बाद से पॉक्सो एक्ट POCSO ACT एक बार फिर चर्चा में है, साथ ही चर्चा में है नागपुर पीठ की महिला जज पुष्पा गनेड़ीवाला, जिन्होंने इन दोनों मामलो की सुनवाई की और पोक्सो अधिनियम की प्रासंगिता पर ही सवाल उठा दिए, बाल अधिकार कार्यकर्ताओ में रोष बढ़ा दिए अंततः सुप्रीम कोर्ट को ही सज्ञान ले कर आरोपियों के बड़ी होने पर रोक लगाना पड़ा.
बच्चों के साथ यौन अपराधों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट Bombay High Court ने जो फैसले सुनाए, उनके बाद से पॉक्सो एक्ट POCSO ACT-2012 एक बार फिर चर्चा में है, साथ ही चर्चा में है नागपुर पीठ की महिला जज पुष्पा गनेड़ीवाला, जिन्होंने इन दोनों मामलो की सुनवाई की.
- एक 12 साल की लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में न्यायमूर्ति पुष्पा गनेड़ीवाला ने कहा कि ‘स्किन टू स्किन टच’ “Skin to Skin Contact” नहीं हुआ तो ऐसे में यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है.
2. इसी तरह उन्होंने इससे ठीक पहले एक और मामले में यह कहा था कि नाबालिग का हाथ पकड़ना और आरोपी की जिप खुली होना पॉक्सो अधिनियम POCSC ACT का मामला नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जारी किया है नोटिस-
ATTORNEY GENERAL K K Venugopal on Tuesday urged the Supreme Court to reverse the Bombay High Court ruling which held that if there is “no direct physical contact, i.e. skin to skin”, no offence of sexual assault under Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012, can be said to be committed.
The judgment “is outrageous and would set a dangerous precedent”, Venugopal told a Bench of Justices U U Lalit and Ajay Rastogi, which is hearing appeals against the January 12 ruling of the Nagpur Bench of the Bombay HC.
The Supreme Court had stayed the HC order on January 27. The AG and NCW had filed separate appeals.
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेड़ीवाला के इन दोनों फैसलों के बाद बाल अधिकार कार्यकर्ताओं में रोष है, साथ ही वे इस तरह के फैसलों को अपराधियों के अंदर का भय खत्म करने वाला बता रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल की बच्ची के साथ हुए मामले को लेकर जस्टिस गनेड़ीवाला के फैसले को पलट दिया है.
सर्वोच्च अदालत को भी सज्ञान लेते हुए आरोपी के पॉक्सो से बरी होने पर रोक लगा दी है, वहीं तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े ने कहा कि हम पीड़ित को उचित याचिका दायर करने का मौका देते हैं साथ ही आरोपी को बरी करने पर रोक लगाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी कर दिया है, लेकिन इसी बीच यह जानने की जरूरत भी पड़ रही है कि पॉक्सो एक्ट यौन दुर्व्यवहार के ऐसे मामलों में क्या कहता है?
‘स्किन टू स्किन टच’ “Skin to Skin Contact” –
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेड़ीवाला ने एक 12 साल की लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में कहा कि ‘स्किन टू स्किन टच’ “Skin to Skin Contact” नहीं हुआ तो ऐसे में यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है. न्यायाधीश पुष्पा गनेड़ीवाला ने इसी आधार पर पीड़ित के साथ हुए यौन उत्पीड़न को पॉक्सो के अंतर्गत नहीं माना .
नाबालिग का हाथ पकड़ने और जिप खुली होने का मामला-
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेड़ीवाला ने पीड़ित का हाथ पकड़ने और अभियुक्त की पैंट की जिप खुली होने के संबंध में पॉक्सो एक्ट की धारा 7 का हवाला दिया था. उन्होंने कहा कि नाबालिग का हाथ पकड़ना या उस वक्त अभियुक्त की पैंट की ज़िप खुला होना, पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) में यौन उत्पीड़न से बच्चों की सुरक्षा की धारा 7 के तहत परिभाषित यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं है.
लोअर कोर्ट ने आरोपी को दी थी सजा-
इसी मामले की सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने अलग-अलग धाराएं लगाकर आरोपी को दोषी करार दिया था. निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा 354A (यौन उत्पीड़न), धारा 448 (जबरन घर में घुसने के लिए सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 8 (यौन हमले के लिए सजा), धारा 10 (उत्तेजक यौन हमले के लिए सजा) और धारा 12 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत दोषी करार दिया था.
क्या है पॉक्सो एक्ट की धारा-7 और धारा-8 ?
पॉक्सो अधिनियम POCSO Act की धारा 7 और 8 के तहत वह मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है. इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. न्यायाधीश पुष्पा गनेड़ीवाला ने इसी आधार पर पीड़ित के साथ हुए यौन उत्पीड़न को पॉक्सो के अंतर्गत नहीं माना था.
दरअसल जस्टिस गनेड़ीवाला महज पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 को लेकर अपना बयान दिया था. हालांकि ऐसा नहीं था कि उन्होंने दोषी को दोष मुक्त माना था. उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 12 के तहत साबित होने वाला यौन उत्पीड़न का छोटा सा मामला भी आईपीसी IPC की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) के तहत दंडनीय अपराध है.
मामले में स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट मुद्दा बना हुआ है-
ठीक इसी तरह बालिका वाले मामले में स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट मुद्दा बना हुआ है. जस्टिस गनेड़ीवाला ने 19 जनवरी को लिए गए इस फैसले में कहा था कि यौन हमले की परिभाषा में ‘शारीरिक संपर्क’ ‘प्रत्यक्ष होना चाहिए’ या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए. उन्होंने इसे यौन हमला नहीं माना, लेकिन भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 के तहत शीलभंग का अपराध जरूर माना.
इस मामले में निचली अदालत Lower Court ने पॉक्सो अधिनियम POCSO Act और Indian Penal Code की धारा 354 दोनों के ही तहत 3 साल कारावास की सजा सुनाई थी. हाइकोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो के तहत दोषी मानने से बरी करते हुए उसकी सजा Indian Penal Code के तहत बरकरार ही रखी है. यानी कि दोषी बरी नहीं किया गया है.
यदि उच्च न्यायालय की व्याख्या को स्वीकार किया जाता, तो यौन शोषण के कई कृत्य अधिनियम के दायरे से बाहर हो जायेंगे-
उदाहरण के लिए, यदि दुर्व्यवहार करने वाला दस्ताने पहनता है और यौन इरादे से बच्चे के पुरे कपड़े उतार देता है और बच्चे के नग्न शरीर को छूता है या किसी अन्य वस्तु के माध्यम से बच्चे के नग्न शरीर को छूता है, या यदि दुर्व्यवहार करने वाला बच्चे के कपड़े उतारे बिना अपने नग्न हाथों से उसके शरीर को छूता है और प्यार करता है ऐसी सभी हरकतें पोक्सो एक्ट के दायरे से बाहर हो जाएंगी.
“यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न के लिए दंड” को (IPC) की धारा 354 [A] में परिभाषित (डिफाइन) किया गया है, जिसके अनुसार-
(i) शारीरिक संपर्क और अग्रक्रियाएं करने, जिनमें अवांछनीय और लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अंतर्वलित हों ; या
(ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने; या
(ii) किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध बलात् अश्तील साहित्य दिखाने; या
(iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियां करने, वाला पुरुष लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा.
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