Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि हाई कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 Article 226 of Indian Constitution के तहत किसी वित्तीय संस्थान/बैंक को कर्जदार को सकारात्मक तरीके से एकमुश्त निपटान (ओटीएस) का लाभ देने का निर्देश देने वाला आदेश पारित नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक कर्जदार अधिकार के रूप में इस तरह के लाभ की मांग नहीं कर सकता है, और एकमुश्त निपटान का अनुदान हमेशा ओटीएस योजना के तहत मानदंड और समय-समय पर जारी दिशानिर्देशों के अधीन होता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिजनौर अर्बन कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, बिजनौर द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर आया, जिसमें अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए बैंक को एकमुश्त निपटान के लिए उधारकर्ता के आवेदन पर सकारात्मक रूप से विचार करने के लिए बैंक को निर्देश देने के लिए एक रिट जारी किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय High Court के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उसने अधिकार क्षेत्र से आगे निकल फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी कर्जदार अधिकार के तौर पर एकमुश्त समाधान योजना का लाभ देने के लिए प्रार्थना नहीं कर सकता।