सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामले में हाईकोर्ट का आदेश खारिज करते हुए दिया आपराधिक कार्यवाही फिर शुरू करने का निर्देश-

सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामले में हाईकोर्ट का आदेश खारिज करते हुए दिया आपराधिक कार्यवाही फिर शुरू करने का निर्देश-

Rajusthan High Court राजस्थान उच्च न्यायालय की ओर से चेक बाउंस के एक मामले में आपराधिक कार्यवाही निरस्त कर दी गई थी। इस फैसले को माननीय शीर्ष अदालत ने रद्द कर दिया है और ट्रायल कोर्ट को कार्यवाही फिर से शुरू करने के लिए कहा है।

Supreme Court of India सर्वोच्च न्यायलय ने राजस्थान की एक ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि चेक बाउंस के एक मामले में आपराधिक कार्यवाही फिर से शुरू की जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि चेक इस टिप्पणी के साथ वापस हो गया था कि संबंधित खाता फ्रीज है।

Chief Justice of INDIA मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने यह आदेश राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सुनाया। हाईकोर्ट ने मामले में आपराधिक कार्यवाही खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के इस दावे को खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ under Section 138 of the Negotiable Instruments Act, 1881 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत कोई मामला नहीं बनता है। बैंक के प्रबंधकों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बैंक में ऐसा कोई खाता नहीं खोला गया था।

पीठ ने कहा कि चेक की वापसी पर की गई टिप्पणियों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि खाता बैंक में मौजूद था। यह कुछ ऐसा है जिस पर निचली अदालत को ध्यान से विचार करना होगा। सभी पक्षों के लिए एक पूर्ण परीक्षण आयोजित किया जाएगा।

पीठ ने कहा, हैरत की बात है कि एक ओर बैंक मैनेजरों ने गवाही दी कि ऐसा कोई Bank Account खाता बैंक में नहीं खुला। वहीं, दूसरी ओर प्रतिवादी की ओर से अपीलकर्ता के पक्ष में आहरित चेक को खाता फ्रीज की टिप्पणी के साथ लौटा दिया गया था।

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किसी भी स्थिति में कार्यवाही खारिज नहीं होनी चाहिए थी-

पीठ ने आगे कहा कि चेक वापसी पर जो टिप्पणी की गई है उससे माना जा सकता है कि बैंक में खाता मौजूद था। यह ऐसा मामला है जिसे ट्रायल कोर्ट को गंभीरता से विचार करना होगा। सभी पक्षों को एक पूर्ण ट्रायल का सामना करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे केवल बैंक मैनेजरों के सबूतों पर नहीं देखा जाना चाहिए। किसी भी स्थिति में यह ऐसा मामला नहीं था जिसकी कार्यवाही खारिज कर दी जाए। ऐसे में हम हाईकोर्ट की ओर से पारित आदेश को खारिज करते हैं।

हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने के साथ आदेश में ट्रायल कोर्ट को यह निर्देश भी दिया गया कि वह मामले की सुनवाई फिर से शुरू करे और इसे कानून के अनुसार तेजी से और संभव हो तो छह महीने की अवधि के भीतर समाप्त किया जाए।

केस टाइटल – VIKRAM SINGH vs SHYOJI RAM
केस नंबर – CRIMINAL APPEAL No.289 OF 2022
कोरम – मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना न्यायमूर्ति हिमा कोहली

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