केंद्र और राज्य सरकारों को SC-ST कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की नीतियों में उन सभी शर्तों को पूरा करना होगा – सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया

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सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC-ST) के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण RESERVATION IN PROMOTION देने की नीतियों POLICIES में उन सभी शर्तों को पूरा करना होगा, जो सर्वोच्च अदालत की अलग-अलग संविधान पीठ ने पिछले दो फैसलों में तय की हैं।

गौरतलब हो की सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने यह साफ कर दिया कि वह एम. नागराज (M.Nagaraj & Others vs Union Of India & Others on 19 October, 2006) और जरनैल सिंह (Jarnail Singh vs Lachhmi Narain Gupta . on 26 September, 2018) मामलों में दिए गए निर्णयों पर पुनर्विचार नहीं करेगी। इन दोनों फैसलों में ही पदोन्नति में आरक्षण संबंधी नीतियों के लिए शर्तें निर्धारित की गई थी।

ये निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है जाने-

M.Nagaraj & Others vs Union Of India & Others on 19 October, 2006 में उच्चतम न्यायलय के संविधान पीठ ने क्या कहा-

पांच जजों की संविधान पीठ CONSTITUTIONAL BENCH, जिसमे मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस संजय कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं, यह फैसला देगी कि 2006 एम नागराज बनाम भारत सरकार मामले में संविधान पीठ के दिए हुए फैसले को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है या नहीं, अर्थात इस पर बड़ी पीठ को फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं।

नागराज मामले पांच जजों की ही एक संविधान पीठ CONSTITUTIONAL BENCH ने फैसला दिया था कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) वर्गों को संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4ख) के अंतर्गत आरक्षण दिया जा सकता है, पर इसके लिए किसी भी सरकार को कुछ मानदंडों को पूरा करना होगा।

उस समय संविधान पीठ CONSTITUTIONAL BENCH ने SC-ST वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान बनाने से पहले किसी भी सरकार के समक्ष इन मानदंडों को रखा था: पिछड़ापन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं कुल प्रशासनिक कार्यक्षमता।

कोर्ट ने तब यह भी आदेश दिया कि एससी-एसटी वर्गों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान बनाने से पहले सरकार को इस बात के योग्य आंकड़े जुटाने होंगे कि ये वर्ग कितने पिछड़े रह गए हैं, इनका प्रतिनिधित्व में कितना अभाव है और यह कि प्रशासन के कार्य पर क्या फर्क पड़ेगा।

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नागराज के फैसले के 12 साल बाद भी सरकार इन वर्गों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े पेश नहीं कर पाई है, जिस वजह से इन वर्गों के पदोन्नति में आरक्षण पर लगभग रोक लग गयी है।

इसके अलावा इस बात पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए कि नागराज मामले में लगाये हुए मानदंड सुप्रीम कोर्ट की ही बड़ी बेंच के निर्णयों के विपरीत हैं।

नागराज मामले में संविधान पीठ ने कहा था की अनुच्छेद 16(4 क) और 16 (4 ख) का आधार अनुच्छेद 16 (4) है, जो मौलिक अधिकार नहीं है।

लेकिन अनुच्छेद 16 (4 क) और 16 (4 ख) का आधार अनुच्छेद 16 (4) नहीं, बल्कि अनुच्छेद 16 (1) है. अनुच्छेद 16 (1) सरकारी नौकरियों में अवसर पाने में बराबरी देने वाला प्रावधान है।

1975 में केरल राज्य बनाम एनएम थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ ने यह निर्णय दिया था कि अनुच्छेद 14, 15, और 16 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए, जिनका मूल आधार बराबरी का अधिकार है. अनुच्छेद 16 (4) अवसरों की समानता को दर्शाता है।

यदि अनुच्छेद 16 (4) , जैसा 7 जजों की पीठ ने माना, अनुच्छेद 16 (1) और अनुच्छेद 14, 15 का विस्तार है, तो अनुछेद 16 (4 क) और 16 (4 ख) भी इन्हीं प्रावधानों का विस्तार हैं।

इन सभी प्रावधानों का एक ही उद्देश्य है– आरक्षण द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को अवसरों की समानता का अधिकार देना ताकि यह वर्ग समाज में सबके बराबर आ सके।

Jarnail Singh vs Lachhmi Narain Gupta . on 26 September, 2018 में उच्चतम न्यायलय ने क्या कहा-

जरनैल सिंह केस में पांच जजों की बेंच ने 2018 में कहा था, ‘संवैधानिक अदालतें जब आरक्षण के सिद्धांत लागू करेंगी तो समानता के सिद्धांत के आधार पर आरक्षण पाने वाले समूह से क्रिमी लेयर को बाहर करने का मामला उसके न्याय क्षेत्र में होगा।’ गौरतलब है कि आरक्षण पाने वाले वंचित समुदायों में से सिर्फ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ही क्रिमी लेयर को हटाए जाने का प्रावधान है।

इन दोनों मामलों में दिए निर्णय में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले एससी-एसटी वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिखाने वाले मात्रात्मक डेटा जुटाने, प्रशासनिक दक्षता और सार्वजनिक रोजगार पर आरक्षण के प्रभाव का आकलन करने को अनिवार्य बनाया था।

130 से ज्यादा याचिकाओं पर शीर्ष न्यायलय कर रही है सुनवाई-

जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ मंगलवार को 11 विभिन्न हाईकोर्ट के फैसलों के आधार पर दाखिल 130 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। विभिन्न हाईकोर्ट ने पिछले दस सालों में विभिन्न आरक्षण नीतियों पर अपने फैसले दिए हैं। ये फैसले महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब आदि राज्यों से जुड़े हैं।

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मंगलवार को सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा, हम यह स्पष्ट करते हैं कि नागराज (2006) या जरनैल सिंह (2018) मामले को फिर से खोलने नहीं जा रहे हैं। इन मामलों में हमारे पास सीमित गुंजाइश है। हम केवल यह परखेंगे कि क्या हाईकोर्ट के फैसलों में शीर्ष अदालत के इन दो निर्णयों में तय सिद्धांतों का पालन हुआ है या नहीं?

केंद्र सरकार CENTRAL GOVERNMENT की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने नागराज मामले के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि एससी-एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को दिखाने के लिए मात्रात्मक डाटा के संग्रह की स्थिति ‘अस्पष्ट’ है।

आरक्षित श्रेणी RESERVED CATEGORY के कुछ उम्मीदवारों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने भी पीठ से कहा कि दोनों निर्णय यह परिभाषित नहीं करते हैं कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व या कुशल कामकाज का क्या मतलब है। उन्होंने कहा कि इस वजह से पदोन्नति में आरक्षण को लेकर भ्रम की स्थिति है। उन्होंने आग्रह किया कि पीठ पिछले फैसलों को स्पष्ट करने के लिए कुछ दिशानिर्देश दे सकती है। लेकिन पीठ ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया।

वहीं, सामान्य श्रेणी GENERAL CATEGORY के उम्मीदवारों के प्रतिनिधि वरिष्ठ वकील राजीव धवन, गोपाल शंकरनारायणन और कुमार परिमल ने पिछले निर्णयों को फिर से खोलने की दलीलों पर कड़ी आपत्ति जताई।

शीर्ष अदालत ने फिर ठुकराई तदर्थ पदोन्नति की इजाजत देने की मांग-

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार की तरफ से एक बार फिर पूरे देश में 1.3 लाख से अधिक रिक्त पदों को भरने के लिए तदर्थ पदोन्नति करने की इजाजत मांगी। उन्होंने कहा कि ये पदोन्नति विशुद्ध रूप से वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी। ऐसे उम्मीदवारों की पदोन्नति के खिलाफ निर्णय आने पर निचले पद पर वापस भेजा जा सकता है।

वेणुगोपाल ने बताया कि अप्रैल 2019 में अदालत के यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने से कई विभागों में कामकाज बहुत मुश्किल हो गया है। लेकिन पीठ ने एक बार फिर से इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया। इससे पहले जुलाई 2020 और जनवरी 2021 में भी सुप्रीम कोर्ट ने तदर्थ पदोन्नति की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

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DOPT सचिव को अवमानना नोटिस नहीं होगा वापस-

अटॉर्नी जनरल की तरफ से कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के सचिव को जारी अवमानना नोटिस वापस लेने के लिए किया गया अनुरोध भी पीठ ने ठुकरा दिया। यह नोटिस केंद्र सरकार के कर्मचारियों की पदोन्नति पर यथास्थिति के आदेश का कथित उल्लंघन करने के लिए दिया गया था।

जाने क्या है राज्यों की परेशानी-

एम. नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि राज्य पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देने का फैसला करते हैं तो उसे समग्र प्रशासनिक दक्षता बनाए रखने के साथ-साथ सार्वजनिक रोजगार में एक वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिखाने वाला मात्रात्मक डाटा भी जुटाना होगा।

शीर्ष अदालत ने SC/ST के पदोन्नति में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर टेस्ट CREAMY LAYER TEST को भी लागू कर दिया था। राज्यों के लिए इन मानदंडों को पूरा करना बहुत मुश्किल हो रहा है। इसके चलते राज्य यह स्पष्टीकरण चाहते हैं कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व कैडर स्तर पर है या विभागीय या पूरे राज्य के स्तर पर। क्रीमी लेयर को बाहर करने और पदोन्नति देने के समय प्रशासनिक दक्षता का आकलन करने की अतिरिक्त शर्तों ने भी राज्यों के लिए समस्याएँ खड़ी कर दी हैं।

हम इसे लेकर कोई दिशानिर्देश नहीं देने जा रहे हैं कि नागराज या जरनैल सिंह मामलों में दिए निर्णय का पालन कैसे किया जाए। हम जरनैल सिंह मामले में पहले ही कह चुके हैं कि यह राज्यों को पता लगाना है कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और समग्र दक्षता के संदर्भ में नागराज मामले के सिद्धांतों का पालन कैसे करना है।

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