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क्या हैं दंतेश्वरी कमांडो फाॅर्स और कैसे सामना करते हैं ये नक्सलियों का, जाने विस्तार से-

दंतेवाड़ा,छत्तीसगढ़ :छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में अखिल महिला नक्सल विरोधी इकाई दंतेश्वरी फाइटर्स ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में प्रतिस्पर्धा करने वाली भारतीय खिलाड़ियों के लिए ‘विजय पंच’ दिया।

दंतेश्वरी लड़ाके कौन है? जाने विस्तार से-

दंतेश्वरी लड़ाके महिला और पुरुष कमांडोज का समूह है, जो जंगल में रहने और लड़ने में पारंगत है।

लाल आतंक का रास्ता छोड़, आत्मसमर्पण करने के बाद ज्यादातर महिलाए ‘घरेलू कामों’ में लग जाती है। लेकिन नकस्ल प्रभावित छत्तीसगढ़ इस मामले में थोड़ा अलग है। यहां इनमें से कुछ महिलाएं हाथों में AK-47 लेकर नक्सलियों के खिलाफ जंग में आगे के मोर्चे पर खड़ी हैं। इन कमांडोंज को छत्तीसगढ़ की संरक्षक देवी के नाम पर ‘दंतेश्वरी लड़ाके’ का नाम दिया गया हैं। इन कमांडो ने नक्सलियों के खिलाफ कई ऑपरेशन में हिस्सा लिया और कई नक्सलीयो को ढेर भी किया।

दंतेश्वरी लड़ाको का समूह बना कर नक्सलियों के खिलाफ इस्तेमाल करने का विचार दंतेवाड़ा जिले के एस. पी. अभिषेक पल्लव के दिमाग की देन है । प्राप्त जानकारी के मुताबिक जब अभिषेक पल्लव आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों के एक कैंप का दौरा करने गए थे, उस वक्त उनके दिमाग में महिला कमांडों बनाने का विचार आया।

कैसे बना दंतेश्वरी फाॅर्स –

बताया गया की ‘एक तरफ जहां ज्यादा पूर्व पुरुष नक्सलियों को प्रशिक्षित करने के बाद उन्हें डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में भर्ती कर लिया गया है, वहीं दूसरी तरफ महिलाएं घरों में बैठकर रोटी बना रही थी। इसकी वजह से वे कुंठा की शिकार हो रही थी. क्योंकि वे जंगल में पुरुषों के साथ बराबरी से रहा करती थीं. लेकिन अब वे पुरुषों की सेवा कर रही हैं. इससे उनके अंदर कमजोर और कमतरी का अहसास होता था। ‘

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इसके बाद पल्लव ने डिस्ट्रिक्ट एस.पी. दिनेश्वरी नंदा से ‘महिला कमांडोज की एक एकीकृत कॉम्बैट फोर्स’ बनाने के लिए कहा. फिर 30 महिलाओं को चुना गया और उन्हें ब्रिगेडियर बी. के. पोंवार (रिटायर्ड) द्वारा संचालित कांकेर जंगल वॉरफेयर कॉलेज भेजा गया. यहां उन्हें दिसंबर में उन्हें 6 हफ्तों की कड़ी कॉम्बैट ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद मार्च तक सभी 30 महिलाओं को इन-हाउस ट्रेनिंग दी गई. पहले तो उन्हें छोटे ऑपरेशनों में भेजा गया, लेकिन अब वे बड़े ऑपरेशंस के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव के मुताबिक इससे और ज्यादा महिला नक्सलियों को सरेंडर करने की प्रेरणा मिलेगी. महिला कमांडोज कुछ मायनों में पर्फेक्ट हैं। वे अपने हथियारों को अपनी साड़ियों में छिपा सकती हैं और किसी को कोई शक हुए बिना ही नक्सलियों पर नजर रख सकती हैं. इतना ही नहीं, वे भीड़ में आसानी से घुल जाती हैं।

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