दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्णय दिया है कि आरोपी किसी तीसरे पक्ष को आपराधिक कार्यवाही में प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त नहीं कर सकता है, जैसे कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक।
न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने कहा कि आपराधिक मामलों में तीसरे पक्ष की उपस्थिति आपराधिक न्याय प्रणाली के उद्देश्य को विफल कर देगी, क्रिमिनल प्रक्रिया संहिता में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति की अनिवार्य आवश्यकता का हवाला देते हुए।
अतः न्यायलय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि के माध्यम से उसकी विशेष पावर ऑफ अटॉर्नी (एसपीए) के तहत कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
निचली अदालत ने दिनांक 5.3.2016 के आदेश में याचिकाकर्ता आरोपी को भगोड़ा घोषित किया था। याचिकाकर्ता एक प्राथमिकी से उपजी आपराधिक कार्यवाही में शामिल किया था। याचिकाकर्ता ने अपने एस.पी.ए. के माध्यम से सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी के द्वारा एक याचिका दायर की।
दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के माध्यम से ऐसी याचिका अस्वीकार्य है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने टी.सी. मथाई और अन्य बनाम जिला एवं सत्र न्यायाधीश (1999) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।।
कोर्ट के अनुसार, “पावर ऑफ अटॉर्नी एक्ट की धारा 2 किसी क़ानून के एक विशिष्ट प्रावधान को ओवरराइड नहीं कर सकती है, जिसके लिए किसी विशेष कार्य को एक पार्टी द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाना आवश्यक है।
ज्ञात हो की नाबालिगों, विकलांग लोगों, पागल लोगों और आरोपी के रूप में नामित अन्य अक्षम लोगों के लिए इस सामान्य नियम के अपवाद हैं। इसके अलावा, ऐसे मामलों में, केवल एक अभिभावक या अगला मित्र ही कार्यवाही शुरू कर सकता है। यह न्यायालय को आपराधिक मामलों में तीसरे पक्ष/जनहित याचिकाकर्ताओं के बोझ से दबने से रोकता है। इसके अलावा, प्रॉक्सी के माध्यम से ऐसी याचिका दायर करना आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल उद्देश्य का उल्लंघन होगा।
दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल – AMRINDER SINGH @ RAJA THROUGH-SPA HOLDER THE SUKHJINDER SINGH Vs STATE OF NCT OF DELHI
केस नंबर – CRL.M.C. 1571/2021
कोरम – Hon’ble Justice RAJNISH BHATNAGAR