औरंगाबाद बेंच बॉम्बे उच्च न्यायलय ने एक फैसले में एक महिला को अपने पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। इस आदेश के तहत महिला अपने पति को गुजारा भत्ता देगी क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
औरंगाबाद बेंच बॉम्बे उच्च न्यायलय ने नांदेड़ की एक निचली अदालत के कुछ आदेशों को बरकरार रखा, जिसमें एक महिला जो स्कूल की शिक्षिका है को अपने अलग हुए पति को अंतरिम मासिक भरण पोषण (ALIMONY) में 3,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था और उसके स्कूल के प्रधानाध्यापक को उसके वेतन से 5,000 रुपये काटने के लिए कहा था।
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला शिक्षक द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय की जस्टिस भारती डांगरे ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के साथ-साथ समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट के Chand Dhawan vs Jawaharlal Dhawan (1993) 3 SCC 406 फैसले का हवाला दिया।
क्या है पूरा मामला-
दरअसल दोनों का विवाह 17 अप्रैल 1992 को हुआ था। शादी के कुछ सालों बाद पत्नी ने क्रूरता को आधार बनाते हुए कोर्ट से इस शादी को भंग करने की मांग की थी जिसे साल 2015 में स्थानीय कोर्ट ने मंजूरी दे दी। तलाक के बाद पति ने नांदेड़ की निचली अदालत में याचिका दायर करते हुए कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पत्नी के पास जॉब है जिसे देखते हुए उसने पत्नी से 15,000 रुपये प्रति माह की दर से स्थायी गुजारा भत्ता देने की मांग की. पति का तर्क था कि उसके पास नौकरी नहीं है जबकि उसकी पत्नी पढ़ी लिखी है।
पत्नी को पढ़ाने में योगदान-
पति ने याचिका दायर करते हुए दावा किया कि उसने पत्नी को पढ़ाने में काफी योगदान दिया है। उसने कहा कि पत्नी को पढ़ाने के लिए उसने अपनी कई महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार किया और घर से जुड़ी चीजों को मैनेज किया था। पति ने दलील दी कि उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कईं समस्याएं है जिसके कारण उसकी सेहत ठीक नहीं रहती। जबकि उसकी पत्नी महीने का 30 हजार कमाती है।
‘मेरी कमाई पर निर्भर है बेटी’
एक तरफ जहां पति ने गुजारा भत्ता देने की अपील की वहीं पत्नी का कहना था कि उसके पति के पास किराने का दुकान है और उसके पास एक ऑटो रिक्शा भी है। महिला ने कहा कि उसका पति उसकी कमाई पर निर्भर नहीं है लेकिन इस रिश्ते में उसकी एक बेटी भी है जो मां की कमाई पर निर्भर है। इसलिए पति द्वारा किए गए गुजारा भत्ता के मांग को खारिज किया जाना चाहिए।
महिला शिक्षक ने अगस्त 2017 में दूसरे संयुक्त सिविल जज, सीनियर डिवीजन, नांदेड़ द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें 3,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने की मांग की गई थी और दिसंबर 2019 में जिस स्कूल में महिला कार्यरत है, उसके प्रधानाध्यापक थे। अगस्त 2017 के आदेश के बाद से उसने अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान नहीं किया था, इसलिए उसके मासिक वेतन से 5000 रुपये काटकर अदालत को भेजने को कहा।
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 25-
तत्पश्चात महिला ने औरंगाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी। महिला ने इस मामले में जानकारी दी कि उसकी शादी वर्ष 1992 में हुई थी लेकिन कुछ समय बाद ही तलाक हो गया था। वर्ष 2015 में महिला और उसके पूर्व पति के साथ उसका तलाक हुआ था। महिला ने बताया कि कोर्ट ने उसके तलाक को मंजूर कर लिया था। इसपर कोर्ट ने पति की तरफ से हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 25 का हवाला दिया और कहा कि पति की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जा सकता है। ये उनके बीच तलाक से प्रभावित नहीं होता है।
“हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में दोनों प्रावधानों के एक संयुक्त पढ़ने से पता चलता है कि 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम में दोनों धाराएं प्रावधानों को सक्षम कर रही हैं और निर्धन पति या पत्नी को या तो पेंडेंट लाइट (मुकदमेबाजी के परिणाम के आधार पर) के रखरखाव का दावा करने का अधिकार प्रदान करती हैं। “
जस्टिस डांगरे ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और धारा 25 का हवाला देते हुए फैसला सुनाया। इस अधिनियम में बेसहारा पत्नी या पति के लिए गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है।
केस टाइटल – BHAGYASHRI VS JAGDISH
केस नंबर – WRIT PETITION NO.2527 OF 2021