सुप्रीम कोर्ट ने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 2020 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम से संबंधित फैसले को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत के बाध्यकारी फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 24 (2) की पुनर्व्याख्या करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
प्रस्तुत याचिका में पुनर्व्याख्या करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग के साथ ही यह भी घोषित करने की मांग की गई थी कि पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया मार्च 2020 का फैसला और ‘उसके तहत पारित फैसले अब अच्छे कानून नहीं हैं।
इस पर सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने अपने तीन मार्च के फैसले में कहा कि ‘इस अदालत के एक बाध्यकारी फैसले को चुनौती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। इसलिए, हम याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं। तदनुसार याचिका को खारिज कर दिया जाता है।’
संविधान का अनुच्छेद 32 क्या कहता है-
ज्ञात हो कि संविधान का अनुच्छेद 32 अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उपायों से संबंधित है। 32 (1) के मुताबिक, इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उचित कार्यवाही द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को स्थानांतरित करने का अधिकार गारंटीकृत है।
संविधान पीठ ने 2020 में दिया था ये फैसला-
संविधान पीठ द्वारा 2020 में दिए अपने फैसले में कहा था कि भूमि अधिग्रहण और मालिकों को उचित मुआवजे के भुगतान पर विवाद पर फिर से सुनवाई ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार’ के तहत नहीं हो सकती है, यदि कानूनी प्रक्रिया 1 जनवरी 2014 से पहले पूरी कर ली गई है।
साथ ही शीर्ष अदालत ने 2013 के अधिनियम की धारा 24 की व्याख्या की थी क्योंकि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत की विभिन्न पीठों द्वारा दो परस्पर विरोधी फैसले दिए गए थे।
बता दें कि अधिनियम की धारा 24 उन स्थितियों से संबंधित है जिनके तहत भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को व्यपगत माना जाएगा। प्रावधान में कहा गया है कि यदि 1 जनवरी, 2014 तक भूमि अधिग्रहण मामले में मुआवजे का कोई फैसला नहीं किया गया है, तो भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के निर्धारण में 2013 अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। प्रावधान यह भी कहता है कि यदि कट-ऑफ तिथि से पहले एक मुआवजे की घोषणा की गई है, तो भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही 1894 अधिनियम के तहत जारी रहेगी।