- प्रमुख बिंदु-
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा की इसतरह अनुच्छेद 21 कहां जाएगा?
- जमानत पर रोक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
- ‘जमानत के आदेश पर रोक दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही लगे’
- दिल्ली हाईकोर्ट ने परविंदर सिंह खुराना के केस में बेल पर रोक लगाई थी
- जमानत पर रोक केवल आतंकवाद जैसे दुर्लभ केस में लगे- SC
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान जमानत पर रोक को लेकर अहम टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत के आदेश पर रोक दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही लगनी चाहिए। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर जमानत के आदेश पर रोक लगाते समय व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है तो ये विनाशकारी होगा।
परविंदर सिंह खुराना की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट-
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में परविंदर सिंह खुराना की जमानत पर रोक लगा दी थी। यही नहीं ये मामला एक साल से ज्यादा समय तक लंबित रहा। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। पीठ ने कहा कि अदालतों को केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही जमानत के आदेश पर रोक लगानी चाहिए, जैसे कि कोई आतंकवादी मामलों में शामिल हो। इसके अलावा जहां आदेश की अवहेलना हुई हो या फिर कानून के प्रावधानों को दरकिनार किया गया हो।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, अदालतें किसी अभियुक्त की स्वतंत्रता को अनौपचारिक रूप से बाधित नहीं कर सकतीं। अदालतों को सिर्फ दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही जमानत आदेश पर रोक लगानी चाहिए। जैसे व्यक्ति आतंकवादी मामलों में शामिल हो, जहां आदेश विकृत हो या कानून के प्रावधानों को दरकिनार किया गया हो। पीठ ने कहा, आप इस तरह से स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। अगर हम इस तरह से रोक लगाते हैं, तो यह विनाशकारी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप इस तरह स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। अनुच्छेद 21 कहां जाएगा? पीठ ने परविंदर सिंह खुराना की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। खुराना ने दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से उनकी जमानत पर रोक लगाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। जमानत आदेश पर रोक लगाने जैसे गंभीर कदम केवल असाधारण परिस्थितियों में ही उठाए जाने चाहिए।
‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखना जरूरी’-
कोर्ट का मानना है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखना जरूरी है। इस फैसले से निचली अदालतों को जमानत के मामलों में अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने में मदद मिलेगी और ये सुनिश्चित होगा कि किसी भी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में न रखा जाए।