HIJAB CONTROVERSY: कर्नाटक उच्च न्यायालय में सुनवाई, कहा गया कि वकील हलफनामा दायर नहीं कर सकते-

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कर्नाटक उच्च न्यायालय से हिजाब विवाद पर तीन मार्च के बाद सुनवाई की गुजारिश की गई है. कहा गया है कि विधानसभा चुनावों की वजह से मामले पर राजनीति हो रही है.

“क्या आसमान गिर जाएगा अगर आप स्कूल में कुछ घंटों के लिए हिजाब नहीं पहनेंगे, तो वे पूछते हैं। “

Hijab Controversy Court Update – हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट में सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने दलीलें पेश कीं. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई कल तक के लिए स्थगित कर दी है. एक महिला अधिकार संगठन की ओर से अधिवक्ता शादान फरासत ने दलीलें दीं.

शादान फरासत ने कोर्ट में कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से पारित आदेश का दुरुपयोग किया जा रहा है. कोर्ट में राज्य सरकार का पक्ष रख रहे महाधिवक्ता ने इसका विरोध किया और कहा कि रिकॉर्ड में कोई आवेदन नहीं है और जो बयान दिए जा रहे हैं वे अस्पष्ट हैं. अधिवक्ता कामत ने कहा कि कल न्यायालय की ओर से पब्लिक ऑर्डर को लेकर कई सवाल आए थे. इस बात को लेकर भी सहमति नहीं थी कि जीओ में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ सार्वजनिक व्यवस्था है.

मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की खंडपीठ ने एक जुड़े मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा कुमार को भी सुना।

कामत ने सोमवार को प्रस्तुत किया था कि राज्य सरकार द्वारा की गई घोषणा कि सिर पर दुपट्टा पहनना संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित नहीं है, ‘पूरी तरह से गलत’ है । यह भी प्रस्तुत किया गया कि राज्य सरकार का आचरण कॉलेज विकास समिति (सीडीसी) को यह तय करने के लिए कि हेडस्कार्फ़ की अनुमति दी जाए या नहीं, ‘ पूरी तरह से अवैध’ है।

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कामत ने कहा कि संविधान के कन्नड़ अनुवाद में पब्लिक ऑर्डर के लिए हर प्रावधान एक ही शब्द का उपयोग किया गया है जैसा कि जीओ में उपयोग किया जाता है. हाईकोर्ट ने इस पर कहा कि हम सरकार की ओर दिए गए आदेश की व्याख्या कर रहे हैं, आधिकारिक शर्तों की नहीं. इस पर कामत ने कहा कि जीओ में प्रयुक्त शब्दों के दो अर्थ नहीं हो सकते. इसका अर्थ केवल पब्लिक ऑर्डर है. संविधान पब्लिक ऑर्डर शब्द का उपयोग नौ दफे किया गया है.

जस्टिस दीक्षित ने पूछा कि क्या आपने सज्जन सिंह मामले में जस्टिस हिदायतुल्ला का फैसला देखा है? उन्होंने कहा है, “मैं एक ग्रामेरियन की भूमिका नहीं निभाना चाहता.” इस पर कामत ने कहा कि मेरा दूसरा बिंदु अनुच्छेद 25 को लेकर है. कोर्ट ने पूछा था कि आप केवल 25(1) पर ही क्यों जा रहे हैं जब 25(2) सुधार की बात करता है जिसे आवश्यक धार्मिक प्रथाओं पर भी लागू किया जा सकता है. कामत ने कन्नड़ में आर्टिकल 25 पढ़ा जिसमें “सार्वजनिक व्यवस्था” के लिए “सार्वजनिक सुव्यवस्ते” का उपयोग था. कामत ने सरदार सैयदना ताहिर मामले का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे कानून को रद्द कर दिया था, जिसने बोहरा सदस्यों की याचिका पर एक समुदाय से एक्स-कम्युनिकेशन को प्रतिबंधित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर यह एक जरूरी प्रथा है, तो इसे बरकरार रखा जाना चाहिए.

अधिवक्ता शादान फरासत ने एक आईए का उल्लेख किया जो याचिकाकर्ता का समर्थन करता है. एडवोकेट मोहम्मद ताहिर ने राज्य की ओर से न्यायालय की ओर से पारित आदेश का दुरुपयोग किया जा रहा है. मुस्लिम लड़कियों को हिजाब हटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. गुलबर्गा में सरकारी अधिकारी एक उर्दू स्कूल में गए और शिक्षकों और छात्रों को हिजाब हटाने के लिए मजबूर किया. कोर्ट ने इस पर कहा कि हम रेस्पॉन्डेंट्स से इसे लेकर निर्देश प्राप्त करने के लिए कहेंगे.

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वकील दाखिल नहीं कर सकते हलफनामा- चीफ जस्टिस

एडवोकेट जनरल ने हलफनामे को अस्पष्ट बताया और कहा कि उन्हें उचित आवेदन के साथ आने दें, हम जवाब देंगे. किसी भी याचिकाकर्ता की ओर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है. चीफ जस्टिस ने पूछा कि हलफनामा किसने दाखिल किया. इसके जवाब में ताहिर ने कहा कि मैंने हलफनामा फाइल किया. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वकील हलफनामा दायर नहीं कर सकते. ये कदाचार होगा.

कामत ने विदेशी अदालतों के आदेश का भी किया जिक्र

कामत ने कोर्ट में विदेशी मामलों का भी जिक्र किया जो हेड स्कॉर्फ और नोज पिन से संबंधित हैं. उन्होंने कोर्ट में दक्षिण अफ्रीका हाईकोर्ट के एक फैसले का उल्लेख किया और कहा कि तथ्य काफी समान है. कोर्ट ने पूछा कि क्या ये एक धार्मिक स्टेट है? इसके जवाब में कामत ने कहा कि जिन देशों का उल्लेख कर रहा हूं, वे धार्मिक स्टेट नहीं हैं. ये दिखाने की अनुमति दें कि ये कैसे प्रासंगिक है.

केस टाइटल – रेशम और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य

कोरम – मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित जस्टिस जेएम खाजी

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