सुप्रीम कोर्ट कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट झेल रहे प्रवासी मजदूरों को राहत देने के मामले पर मंगलवार (29 जून) को फैसला सुनाएगा।
वहीं सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि राशन कार्ड या पहचान पत्र न होने के चलते किसी को अनाज देने से मना न किया जाए।
पिछले 11 जून को सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के मामले पर कोर्ट की ओर से स्वत: संज्ञान लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुनवाई के दौरान जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी राज्यों से कहा था कि वे वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना को लागू करें, ताकि प्रवासी मजदूरों को राशन मिल सके।
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र और पंजाब सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि उन्होंने वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना को लागू किया है।
सुनवाई के दौरान जब पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा था कि आधार से लिंक करने में दिक्कत होने की वजह से राज्य सरकार ने ये योजना लागू नहीं की है।
तब कोर्ट ने कहा था कि इस पर कोई बहाना नहीं चलेगा, सभी राज्य वन नेशन वन राशन कार्ड योजना को लागू करना सुनिश्चित करें।
केंद्र सरकार ने वन नेशन वन राशन कार्ड स्कीम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा था कि दिल्ली में ये योजना लागू नहीं की गई है।
दिल्ली में केवल सीमापुरी सर्किल में ही उसे लागू किया गया है। केंद्र सरकार ने कहा था कि दिल्ली सरकार का वह दावा गलत है कि स्कीम पूरे राज्य में लागू है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि केंद्रशासित प्रदेशों समेत 32 राज्यों की करीब 86 फीसदी आबादी को खाद्यान्न सुरक्षा कानून के तहत लाया गया है और उन्हें वन नेशन वन राशनकार्ड की स्कीम का लाभ मिल रहा है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि इस स्कीम में असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में यह लागू नहीं हो पाया है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी इन राज्यों की है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि कोरोना के दौरान उसने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तीसरे चरण के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अतिरिक्त अनाज उपलब्ध कराया है।
वहीं मई और जून में पांच किलो प्रति व्यक्ति मुफ्त अनाज दिया गया है। इस योजना से 80 करोड़ लोगों को लाभ हुआ है।