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माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 2015 में खत्म की गई IT एक्ट की धारा 66A के तहत अब भी दर्ज हो रहे केस को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। धारा 66A को मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को पूछा कि 66A रद्द होने के बावजूद FIR और ट्रायल में इस धारा का इस्तेमाल क्यों हो रहा है।
इस पर अटॉर्नी जनरल (Attorney General) ने कहा कि कानून की किताबें अभी पूरी तरह से बदली नहीं हैं. इसके बाद कोर्ट ने हैरानी जताते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया है।
कोर्ट ने ये नोटिस मानवाधिकार पर काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) की याचिका पर जारी किया है।
PUCL ने बताया कि अभी भी 11 राज्यों की जिला अदालतों में धारा 66A के तहत दर्ज 745 मामलों पर सुनवाई चल रही है।
किताबें अभी पूरी तरह से बदली नहीं जा सकी हैं-
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (KK Venugopal) ने बताया कि कानून की किताबें अभी भी ठीक तरह से बदली नहीं हैं।
उन्होंने कहा, “IT एक्ट की जिस धारा 66A को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था, वो धारा अभी कानून की किताबों में हैं।
इन किताबों में बस नीचे एक फुटनोट रहता है जिसमें लिखा होता है कि ये धारा सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी थी.” उन्होंने कहा कि फुटनोट कोई पढ़ता नहीं है, इसलिए किताबों में और थोड़ा साफ लिखा जाना चाहिए ताकि पुलिस अधिकारी भ्रमित न हों। इस पर जस्टिस आरएफ नरीमन (RF Nariman) ने हैरानी जताते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
66A के तहत अभी भी पेंडिंग हैं 745 केस –
उच्चतम न्यायालय में PUCL की ओर से पेश हुए सीनियर वकील संजय पारिख ने बताया कि 10 मार्च 2021 तक देश के 11 राज्यों की अदालतों में अभी भी 745 ऐसे केस पेंडिंग हैं, जिनमें 66A के तहत आरोप तय किए गए हैं।
उन्होंने बताया कि इस धारा को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया था, उसके बावजूद पुलिस इसका इस्तेमाल कर रही है।
उन्होंने बताया कि मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद धारा 66A के तहत 1,307 नए केस दर्ज किए गए हैं। सबसे ज्यादा 381 केस महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं. उसके बाद 295 केस झारखंड में और 245 केस यूपी में दर्ज किए गए हैं।
याचिका में मांग की गई थी कि कोर्ट NCRB या किसी दूसरी एजेंसी को धारा 66A के तहत दर्ज केस के साथ-साथ अदालतों में पेंडिंग मामलों की जानकारी देने का आदेश जारी करे
क्या कहती है IT एक्ट की धारा 66A?
देश में 2000 में IT कानून लाया था. उसके बाद 2008 में इसमें संशोधन कर 66A को जोड़ा गया था। 66A में प्रावधान था कि अगर कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया पर कुछ भी आपत्तिजनक पोस्ट लिखता है या साझा करता है। यहां तक कि अगर ईमेल के जरिए भी कुछ आपत्तिजनक कंटेंट भेजता है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है।
इस धारा 66A के तहत 3 साल की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था. इस धारा के खिलाफ श्रेया सिंघल ने याचिका दायर की थी. इस पर मार्च 2015 ने फैसला देते हुए धारा 66A को ‘असंवैधानिक’ मानते हुए रद्द कर दिया था।