सुप्रीम कोर्ट पंहुचा शवों के अंतिम संस्कार का मामला, जानिए क्‍या है इस धर्म में शवों के अंतिम संस्‍कार का तरीका?

  • अंतिम संस्‍कार के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका 
  • केंद्र सरकार ने तरीके पर रोक लगाने की मांग 
  • पारसी धर्म में शव का खास तरीके से होता है अंतिम संस्‍कार

हर धर्म-संप्रदाय में शादी-ब्‍याह से लेकर अंतिम संस्‍कार तक के अपने तरीके और रस्‍मो-रिवाज होते हैं. जैसे हिंदू और सिख धर्म के अनुयायी शव का दाह संस्‍कार करते हैं लेकिन मुस्लिम और ईसाई शव को दफनाते हैं. किन्‍नरों के भी अंतिम संस्‍कार करने का अपना खास तरीका है. किन्‍नर समाज में किसी की मृत्‍यु होती है तो सबसे पहले उसकी आत्‍मा का आजाद करने की प्रक्रिया की जाती है. इसके लिए दिवंगत के शव को सफेद कपड़े में लपेट दिया जाता है. साथ ही ख्‍याल रखा जाता है कि शव पर कुछ भी बंधा हुआ न हो। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि द‍िवंगत की आत्‍मा आजाद हो जाये. वैसे ही पारसी धर्म के लोग एक बेहद खास तरीके से अंतिम संस्‍कार करते हैं.

कोरोना महामारी के दौर में सरकार ने पारसी धर्मावलंबियों के इस खास तरीके पर आपत्ति उठाई है और ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है.  

क्‍या कहा है सरकार ने?

केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि कोविड रोगी की मृत्‍यु होने पर उसका अंतिम संस्‍कार सही तरीके से करना जरूरी है, ताकि उससे संक्रमण न फैले. इसके लिए या शव को जलाया जाए या दफन किया जाए. वरना कोविड संक्रमित रोगी के शव के पर्यावरण, जानवरों आदि के संपर्क में आने से संक्रमण फैलने की आशंका रहती है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जन स्वास्थ्य प्रोटोकॉल सुनिश्चित करते हुए अंतिम संस्कार के SOP (प्रोटोकॉल) में बदलाव करने पर फिर से विचार करने के लिए याचिकाकर्ताओं और पारसी धर्म के गणमान्य लोगों के साथ बैठ की जाए. ताकि धार्मिक भावनाएं भी आहत न हों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी असर न पड़े. 

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क्‍या है पारसी धर्म में अंतिम संस्‍कार करने का तरीका

जैसे की जब लोग मर जाते है तो धर्म के अनुसार लोगो को या तो दफनाया जाता है या फिर जलाया जाता है. लेकिन पारसी धर्म में ऐसा नहीं होता है वहा जब लोगो की मृत्यु हो जाती है तो. उन्हें दफनाया या जलाया नहीं जता है इसे  बल्कि एक ऐसी जगह पर ले जाया जाता है जिसे “टावर ऑफ सायलेंस” ( Tower Of Silence ) या “दखमा” भी कहा जाता है. ज्यादातर यह गोलाकार एवं ऊंचा स्थान होता है जहां मृत शरीर को मांसाहारी पक्षियों जैसे -चील , कौआ , गिद्ध आदि के खाने के लिए रखा जाता है और आसमान के हवाले कर दिया जाता है. यह पारसी धर्म की अंतिम संस्कार की एक क्रिया है. मरने के बाद लोगो को दफनाने या जलाने की बजह उन्हें मांसाहारी पक्षियों जैसे -चील , कौआ , गिद्ध को खाने के लिए वही रखा दिया जाता है.अंतिम संस्‍कार की यह परंपरा पारसी धर्म में 3 हजार साल से ज्‍यादा पुरानी है और पारसी लोग कोविड काल में भी इसी परंपरा के जरिए अंतिम संस्‍कार करना चाहते हैं. पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. ऐसे में शव को जलाने, पानी में बहाने या दफन करने से ये तीनों तत्‍व अशुद्ध हो जाते हैं. हालांकि गिद्धों की घटती संख्‍या के कारण पिछले कुछ सालों से उन्‍हें अंतिम संस्‍कार करने में खासी दिक्‍कतें आ रही हैं. 

जानकारी हो कि दुनिया में पारसी धर्म के अनुयायियों की कुल आबादी 1 लाख के करीब है, जिसमें से 60 हजार से ज्‍यादा पारसी केवल मुंबई में रहते हैं. यहां पर साइलेंस ऑफ टॉवर है. 

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