Sc7

सुप्रीम कोर्ट ने जिरह की प्रक्रिया अचानक स्थगित करने का संज्ञान लिया और कहा कि ऐसा करने से न्याय वाधित होता है-

सर्वोच्च अदालत ने जिरह की प्रक्रिया अचानक स्थगित करने का संज्ञान लिया और कहा कि इससे ऐसे हालात पैदा होते हैं जिससे निजी गवाह मुकर जाते हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि तय समय में आरोपपत्र का संज्ञान नहीं लेने पर जमानत का अधिकार नहीं।

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभर में निचली अदालतों को निजी गवाहों से पूछताछ, जहां तक संभव हो, उसी दिन पूरी करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे गवाहों से ‘जिरह’ की प्रक्रिया अचानक ही बगैर किसी कारण स्थगित करने की प्रवृत्ति का संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने यह टिप्पणी की।

निजी गवाह मुकर जाते हैं

देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बार-बार न्याय मिलने की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए जान-बूझकर किए जा रहे प्रयास पर वह आक्रोश व्यक्त करती है। इससे ऐसे हालात पैदा होते हैं, जिससे निजी गवाह जाहिर कारणों से मुकर जाते हैं। न्यायमूर्ति एसएस कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, मुख्य पूछताछ पूरी होने के बाद लंबे समय के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है। इससे बचाव पक्ष को विजयी होने में सहायता मिल जाती है।

सुप्रीम कोर्ट – एक ही दिन में पूछताछ पूरी करे

न्यायमूर्ति एसएस कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने अपने आदेश में कहा, “इसलिए, हम यह दोहराना उचित समझते हैं कि निचली अदालतों को जहां तक ​​संभव हो, एक ही दिन में व्यक्तिगत गवाहों की मुख्य परीक्षा और जिरह आयोजित करने का प्रयास करना चाहिए।” शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ चार अपीलकर्ताओं की अपील पर यह फैसला सुनाया। 2004 में दो लोगों को गोली मारने के मामले में हाईकोर्ट ने चारों को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। शीर्ष अदालत ने फैसले की एक प्रति संबंधित हाईकोर्ट के माध्यम से सभी निचली अदालतों को वितरित करने का आदेश दिया था।

ALSO READ -  मद्रास उच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों में सीमा अवधि के विस्तार के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए

तय समय में आरोपपत्र का संज्ञान नहीं लेने पर जमानत अधिकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कोई आरोपित आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत इस आधार पर जमानत पाने का हकदार नहीं है कि निचली अदालत ने 60 या 90 दिन की निर्धारित अवधि से पहले जांच एजेंसी द्वारा दाखिल आरोपपत्र का संज्ञान नहीं लिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने निवेशकों के 200 करोड़ रुपये की हेराफेरी करने से जुड़े मामले में आदर्श क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी के प्रबंध निदेशक मुकेश मोदी और राहुल मोदी को दी गई जमानत निरस्त कर दी।

Translate »
Scroll to Top