सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के बंटवारे पर फैसला सुना दिया है. संविधान पीठ ने कहा है कि दिल्ली भले केन्द्र शाषित प्रदेश है लेकिन केन्द्र के पास जमीन, पुलिस और आर्डर का क्षेत्राधिकार है.
इस मामले की सुनवाई पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की. सीजेआई न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने किया.
पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि संघ के पास सूची 1 की विशेष शक्तियाँ हैं और राज्य के पास सूची 2 से अधिक है. पीठ ने कहा है कि राज्यों के पास भी शक्ति है लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति मौजूदा कानून के अधीन होगी संघ को यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ द्वारा अपने हाथ में न ले लिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेवा की अवधि से संबंधित एनसीटी और केंद्र की विधायी शक्ति के दायरे से संबंधित सीमित मुद्दा है. पीठ ने कहा कि क्या एनसीटी का सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी नियंत्रण है. हमने 2018 की संविधान पीठ के फैसले को देखा है और जस्टिस भूषण के विचार से हम सहमत नहीं हैं.
अधिकारियों का नियत्रंण चुनी हुई सरकार के पास–
पीठ ने कहा है कि एलजी राष्ट्रपति द्वारा सौंपी गई प्रशासनिक भूमिका के तहत शक्तियों का प्रयोग करेंगे। कार्यकारी प्रशासन केवल उन मामलों तक ही विस्तारित हो सकता है जो विधान सभा के बाहर आते हैं लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सौंपी गई शक्तियों तक सीमित है और इसका मतलब पूरे एनसीटीडी पर प्रशासन नहीं हो सकता है .. अन्यथा दिल्ली में एक अलग निर्वाचित निकाय होने का उद्देश्य व्यर्थ हो जाएगा.
लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण होगा। अगर एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को अपने अधिकारियों को नियंत्रित करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने की अनुमति नहीं है, तो विधायिका और जनता के प्रति इसकी जिम्मेदारी कम हो जाती है. अगर अधिकारी सरकार को जवाब नहीं दे रहा है तो सामूहिक जिम्मेदारी कम हो जाती है. अगर अधिकारी को लगता है कि वे निर्वाचित सरकार से अछूते हैं तो उन्हें लगता है कि वे जवाबदेह नहीं हैं.
सेवाओं पर NCTD के फैसले से बंधे होंगे L-G
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में भूमि, पुलिस और कानून व्यवस्था के अलावा सेवाओं पर एनसीटीडी के फैसले से बंधे होंगे.
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल GNCTD को अपने विधायी डोमेन से बाहर किए गए लोगों के अधीन सेवाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए. प्रविष्टि 41 के तहत एनसीटीडी की विधायी शक्ति आईएएस तक विस्तारित होगी और यह उन्हें एनसीटीडी द्वारा भर्ती नहीं किए जाने पर भी नियंत्रित करेगी. हालांकि यह उन सेवाओं तक विस्तारित नहीं होगा जो भूमि, कानून और व्यवस्था और पुलिस के अंतर्गत आती हैं.
ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को-
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया है दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग पर पुरी तरह से दिल्ली सरकार का नियत्रंण होगा.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें संघ के तर्कों से निपटना आवश्यक लगता है कि वाक्यांश को प्रतिबंधात्मक तरीके से पढ़ा जाना चाहिए. अनुच्छेद 239 AA 3 (ए) एनसीटीडी को विधायी शक्ति प्रदान करता है लेकिन सभी विषयों पर नहीं.
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 18 जनवरी 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
ये है पूरा मामला-
देश की राजधानी दिल्ली एक केन्द्रशाषित प्रदेश है और यहां पर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार बंटे हुए हैं. राजधानी दिल्ली में फैसले लेने का अधिकार केवल दिल्ली सरकार पास ही नहीं बल्कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें केंद्र सरकार फैसले लेती है.
दिल्ली में भूमि और पुलिस के मामलों में फैसला लेने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में फैसला सुनाया था कि दिल्ली के एलजी स्वतंत्र रूप से कोई फैसला नहीं लेंगे यदि दिल्ली सरकार के कानून या पॉलिसी में कोई भी अपवाद है तो राष्ट्रपति को रेफर करेंगे. राष्ट्रपति जो भी फैसला लेंगे, उस पर अमल करेंगे।
इस पूरे मसले पर 14 फरवरी 2019 में फैसला दिया गया था लेकिन दो जजों के अलग-अलग मत रहे. जस्टिस सीकरी ने माना था कि दिल्ली सरकार को अपने यहां काम कर रहे अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए लेकिन उन्होंने भी यही कहा कि जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण रहेगा. उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल करेंगे. उससे नीचे के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग दिल्ली सरकार कर सकती है.
वही इस फैसले में जस्टिस भूषण ने यह माना था कि दिल्ली एक केंद्रशासित क्षेत्र है. उसे केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं मिल सकता.
केस टाइटल – गवर्नमेंट ऑफ़ NCT दिल्ली vs यूनियन ऑफ़ इंडिया