Sci Kavad Yyatra

कांवड़ यात्रा के दौरान नाम लिखने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, नेम प्लेट के आदेश पर लगाई रोक, UP-उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब

महुआ मोइत्रा की याचिका पर सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी दलील पर दलील दे रहे थे, तभी अदालत ने उन्हें रोका। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर न बोलने की हिदायत दी।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तराखंड सरकार के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। दरअसल यहां कांवड़ यात्रा रूट पर पड़ने वाले खाने-पाने के तमाम दुकानों के मालिक को अपने नाम और कर्मचारियों के नाम साफ-साफ लिखने का आदेश दिया गया था। हालांकि अब कोर्ट ने इस पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए शुक्रवार तक जवाब देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक पुलिस के निर्देशों पर रोक लगा दी। इसके साथ ही कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई तक किसी को जबरन नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने आदेश दिया, “यहां चुनौती एसएसपी मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा 17.07.2024 को जारी किए गए निर्देशों और ऐसे निर्देशों का पालन न करने की स्थिति में पुलिस कार्रवाई की धमकी को लेकर है। मुजफ्फर पुलिस द्वारा हिंदी में जारी किए गए विवादित निर्देशों और उनके अनुवाद पर विवाद इस प्रकार है…… उपरोक्त से पता चलता है कि पवित्र श्रावण मास में गंगा नदी से जल लेने के लिए यात्रा करते समय कांवड़िए अपने आहार में कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं। इसे किसी भी मांसाहारी भोजन का सेवन न करने या सख्त शाकाहार का पालन करने वालों के मामले में प्याज और लहसुन का भी त्याग करने के रूप में समझा जा सकता है। यदि कांवड़ियों को केवल शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराने का इरादा है, तो खाद्य व्यवसाय संचालकों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए दिए गए निर्देश हमारे देश में प्रचलित संवैधानिक और कानूनी मानदंडों के विपरीत हैं।”

ALSO READ -  'घरवालों की मर्जी के खिलाफ विवाह करने पर हर वर्ष होती है सैकड़ों युवाओं की हत्या', ऑनर किलिंग पर CJI ने जाहिर की गहरी चिंता  

‘नाम बताऊं तो भी मुश्किल, न बताऊं तब भी मुश्किल’-

दरअसल ‘एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ‘यह चिंताजनक स्थिति है, पुलिस अधिकारी खुद ही एक विभाजन बनाने पर तुले हैं ताकि सामाजिक रूप से पिछड़े, अल्पसंख्यक आर्थिक रूप से भी बंट जाएं।’

वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील पेश करते हुए एक अन्य वकील अभिषेक मनुसिंघवी ने कहा, ‘यहां अजीब से स्थिति है। अगर मैं अपना नाम नहीं लिखता तो मुझे बाहर रखा जाता है, अगर मैं अपना नाम लिखता हूं, तो भी मुझे बाहर रखा जाता है।’

सुप्रीम कोर्ट में उठा सवाल- स्वैच्छिक है या अनिवार्य है आदेश-

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये स्वैच्छिक है, मैंडेटरी नहीं है। सिंघवी ने कहा, वह कह रहे हैं कि ये स्वैच्छिक है, लेकिन जबरन करवाया जा रहा है। जो नहीं मान रहे उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही है। उन पर फाइन लगाया जा रहा है. ये दिल्ली से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर है. एक तरह से उनकी आर्थिक मौत के बराबर है।’

इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘जब हम रेस्टोरेंट जाते हैं तो मीनू देखते हैं। ये नहीं कि किसने बनाया है। लोकतंत्र में इस तरह की कल्पना नहीं की गई होगी. यात्रा दशकों से हो रही है। सभी धर्म के लोग उसमें सहयोग करते हैं। इस दौरान मांसाहारी पर पहले से ही पूरी तरह से रोक रहती है।’

ALSO READ -  Protection Of Advocates: HC ने उचित कानून बनने तक दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करने पर राज्य से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या चाहते हैं कांवड़िये-

इस पर जज एसवी भट्टी, ‘एक जगह मुस्लिम और एक हिंदू मालिक वाला होटेल था। मैं मुस्लिम वाले में जाता था, क्योंकि वहां इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का पालन होता थे।’ वहीं सिंघवी ने कहा कि ‘हज़ारों अपना रोज़गार खो रहे हैं। इस पर देखना होगा। ये ना सिर्फ़ मुस्लिमों बल्कि दलितों को भी अलग करने का आइडिया है।’ सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर न बोलने की हिदायत दी।

सिंघवी की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कांवड़िये क्या चाहते हैं। वो भगवान शिव की पूजा करते हैं। क्या वो ऐसा चाहते हैं कि खाना कोई खास कम्युनिटी उगाये, बनाये और परोसे। ’ कोर्ट ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए शुक्रवार तक जवाब देने को कहा है।

कोर्ट ने इस पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई तक किसी को जबरन नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

वाद शीर्षक – एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, महुआ मोइत्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, और अपूर्वानंद झा एवं अन्य बनाम भारत संघ और अन्य
वाद संख्या – [डब्ल्यू.पी. (सी) संख्या 463/2024, डायरी संख्या 32131/2024, और डायरी संख्या 32127/2024]

Translate »
Scroll to Top