हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि के निर्णय को निरस्त कर दिया तथा धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के तहत अपराध को शमन कर दिया, जब अभियुक्त ने शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लिया।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 के साथ परक्राम्य लिखत अधिनियम, (जिसे आगे “अधिनियम” कहा जाएगा) की धारा 147 के तहत दायर तत्काल याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता की ओर से अधिनियम की धारा 138 के तहत याचिकाकर्ता द्वारा किए गए अपराध को कम करने और राजेश पठानिया बनाम सतवीर सिंह नामक आपराधिक मामला संख्या 4-3/2018 में विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, कोर्ट संख्या 3, शिमला, जिला शिमला, हिमाचल प्रदेश द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के आदेश दिनांक 02.12.2021/04.12.2021 को रद्द करने की प्रार्थना की गई है, जिसके तहत निचली अदालत ने याचिकाकर्ता/अभियुक्त (इसके बाद, “अभियुक्त”) को अधिनियम की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध करने का दोषी मानते हुए, उसे दोषी ठहराया और उसे एक वर्ष और छह महीने की अवधि के लिए साधारण कारावास की सजा सुनाई और प्रतिवादी/शिकायतकर्ता (इसके बाद, “शिकायतकर्ता”) को 1,90,000/- रुपये का मुआवजा देने की सजा सुनाई।
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की पीठ ने कहा, “अपराध को शमन करने की प्रार्थना दामोदर एस. प्रभु बनाम सैयद बाबालाल एच. (2010) 5 एससीसी 663 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के संदर्भ में स्वीकार की जा सकती है, जिसमें यह स्पष्ट रूप से माना गया है कि न्यायालय, अधिनियम की धारा 147 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए, निचली अदालतों द्वारा दोषसिद्धि दर्ज किए जाने के बाद भी अपराध को शमन करने के लिए आगे बढ़ सकता है।”
अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता मोहर सिंह तथा प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता हेमेंद्र चंदेल उपस्थित हुए।
संक्षिप्त तथ्य-
शिकायतकर्ता ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत मामला दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने 95 हजार रुपए उधार लिए तथा पोस्ट डेटेड चेक जारी किया, जो अपर्याप्त धनराशि के कारण अनादरित हो गया। आरोपी द्वारा ऋण न चुकाने पर ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी करार दिया। सत्र न्यायाधीश के समक्ष उसकी अपील तथा आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई। गिरफ्तारी से पहले आरोपी ने शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लिया था।
वर्तमान याचिका अपराध के शमन तथा दोषसिद्धि को निरस्त करने की मांग करते हुए दायर की गई है। न्यायालय ने के. सुब्रमण्यम बनाम आर. राजथी 2010 (15) एससीसी 352 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि अधिनियम की धारा 147 तथा सीआरपीसी की धारा 320 के अंतर्गत निहित प्रावधानों को देखते हुए, दोषसिद्धि के निर्णय की रिकॉर्डिंग के बाद भी समझौता स्वीकार किया जा सकता है।
तदनुसार, न्यायालय ने पक्षकारों को समझौते के आलोक में मामले का शमन कराने की अनुमति दी।
अंत में, न्यायालय ने याचिका का निपटारा कर दिया।
वाद शीर्षक – सतवीर सिंह बनाम राजेश पठानिया एवं अन्य