राजस्थान पुलिस ने बुजुर्ग को NDPS ACT में दिया फंसा, भाकरराम 5 माह रहा जेल में, अब आया ये अहम फैसला-

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राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (Rajusthan State Human Rights Commission) ने राजस्थान पुलिस की ओर से निर्दोष व्यक्ति को जेल मेें रखने के मामले में बड़ा और अहम फैसला सुनाया है. मामले को गंभीरता से लेते हुए न्यायमूर्ति व्यास ने कहा कि यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक गंभीर मामला है, जिसमें एक 70 वर्षीय व्यक्ति को एक अपराध में फंसाने वाले पुलिसकर्मियों द्वारा रची गई साजिश के तहत पांच महीने तक जेल में रहना पड़ा था. आयोग ने पीड़ित को पांच लाख रुपये बतौर क्षतिपूर्ति देने के आदेश दिये हैं.

आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी के व्यास ने भी सरकार को आदेश दिया कि सरकार चाहे तो ये क्षतिपूर्ति राशि दोषी पुलिसकर्मियों से एक सैट पैटर्न के आधार पर वसूल कर सकती है. वहीं आयोग ने यह भी कहा कि दोषी पुलिसकर्मियों को आगामी पांच साल तक किसी थाने मे पोस्टिंग ना दी जाये.

राजस्थान पुलिस (Rajusthan Police) कैसे किसी निर्दोष व्यक्ति को अपने शिकंजे में कसकर अपराधी बनाकर जेल भेज देती है ? इस खेल का खुलासा खुद पुलिस विभाग ने अपनी जांच में किया है. जोधपुर जिले में हुये इस पुलिसिया खेल का खुलासा होने के बाद राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग (Rajusthan State Human Rights Commission) ने भी इस केस में बड़ा और अहम फैसला सुनाया है.

आयोग ने अपने फैसले में पीड़ित को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिये हैं. आयोग ने कहा कि सरकार चाहे तो मुआवजे की यह राशि दोषी पुलिसकर्मियों से वसूल सकती है. वहीं आयोग ने यह भी कहा कि दोषी पुलिसकर्मियों को आगामी पांच तक किसी भी थाने में तैनात नहीं किया जाये.

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जानकारी के अनुसार जोधपुर के जांबा क्षेत्र में रहने वाले 70 वर्षीय भाकरराम के होश उस समय उड़ गए जब मई 2012 को पुलिस उनके घर पर पहुंची. वे समझ नहीं पाए कि आखिर पुलिस उनके घर पर क्यों आई है? देखते ही देखते पुलिस वाले अपने हाथ से 3 किलो अफीम का दूध उनके सामने रख कर बोले कि आपके घर से यह अफीम का दूध बरामद हुआ है और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. भाकरराम के खिलाफ एनडीपीएस की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

भाकरराम करीब 5 महीने तक जेल में रहा

उसके बाद भाकरराम को जेल भेज दिया गया. इस मामले में भाकरराम करीब 5 महीने तक जेल में रहा. इस मामले में शक पैदा होने पर जोधपुर रेंज आईजी ने इसकी निष्पक्ष जांच के आदेश दिए. इसमें यह पाया गया कि भाकरराम के विरुद्ध बिल्कुल झूठा मुकदमा दर्ज किया गया था. जांच के तथ्य सामने आने के बाद भाकरराम को जेल से बाहर निकाला गया. इसके साथ ही दोषी पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया था.

मुआवजा राशि पुलिसकर्मियों से वसूल सकती है सरकार

उसके बाद यह मामला राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के समक्ष आया. राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास की बेंच ने इसमें मंगलवार को महत्वपूर्ण आदेश सुनाया है. आयोग ने पीड़ित भाकरराम को पांच लाख रुपये 2 माह की अवधि में बतौर क्षतिपूर्ति देने के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार को यह छूट दी है कि वह क्षतिपूर्ति की राशि के लिए दो लाख रुपए जांबा के तत्कालीन थानाधिकारी सीताराम के वेतन से और एक-एक लाख रुपये कांस्टेबल करनाराम व भगवानाराम से वसूल कर सकते हैं.

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आरोपी पुलिसकर्मियों को 5 साल तक किसी थाने में तैनात नहीं करें

राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने अपने फैसले में पुलिस के उच्च अधिकारियों की ओर से मामले में निष्पक्ष जांच करके जनता के सामने सच लाने की प्रयासों की सराहना की है. आयोग ने उच्च अधिकारियों को आगामी स्वतंत्रता दिवस पर पुरस्कृत करने के निर्देश भी दिए हैं. इसके साथ ही मानव अधिकार आयोग ने अपने फैसले में यह निर्देश भी दिया है कि आरोपी पुलिसकर्मियों को आगामी 5 वर्ष तक किसी भी थाने में तैनात नहीं किया जाए.

निष्पक्ष जांच के लिए उच्च अधिकारियों को पुरस्कृत करने के आदेश

राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के फैसले में पुलिस के उच्च अधिकारियों द्वारा मामले में निष्पक्ष जांच करने के लिए पुरस्कृत करने के आदेश दिए. इसके साथ ही निर्देशित किया गया है कि सभी आरोपी पुलिसकर्मियों को आगामी 5 वर्ष तक किसी भी थाने में तैनात नहीं किया जाए.

न्यायमूर्ति ने कहा- ये मानवाधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मामला-

मामले को गंभीरता से लेते हुए न्यायमूर्ति व्यास ने कहा कि यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक गंभीर मामला है, जिसमें एक 70 वर्षीय व्यक्ति को एक अपराध में फंसाने वाले पुलिसकर्मियों द्वारा रची गई साजिश के तहत पांच महीने तक जेल में रहना पड़ा था. उन्होंने कहा कि पीड़ित को जेल के कारण हुई मानसिक पीड़ा और समाज में उनकी छवि और प्रतिष्ठा के नुकसान का आकलन करना संभव नहीं है.

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