सुप्रीम कोर्ट ने HC के फैसले को उलट DJ के आदेश को दी मंजूरी कहा Article 227 के तहत उच्च न्यायलय को सिर्फ पर्यवेक्षण का अधिकार-

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उच्च न्यायालय ने जिला जज ने विवादित सम्पत्ति खाली करने के आदेश और अंतिम आदेश के खिलाफ संयुक्त संशोधन याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करके कानूनन गलत किया था।

सर्वोच्च न्यायालय Supreme Court ने स्पष्ट किया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 Article 227 of Indian Constitution के तहत उच्च न्यायालयों High Court को पर्यवेक्षण Observation का ही अधिकार है और इसके तहत वे खुद अपीलीय न्यायालय Appellate Court की तरह व्यवहार नहीं कर सकते।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय Uttrakhand High Court के एक आदेश को पलटते हुए कहा कि कानून का प्रतिपादित सिद्धांत है कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल केवल अधीनस्थ अदालतों एवं न्यायाधिकरणों को उनके अधिकार क्षेत्र के दायरे में रखने के लिए किया जाना चाहिए, न कि महज भूल सुधार के लिए।

पीठ की ओर से न्यायमूर्ति बी आर गवई द्वारा लिखे गये 39 पृष्ठों के आदेश में कहा गया है कि अनुच्छेद 227 Article 227 के तहत उच्च न्यायालयों को पर्यवेक्षण संबंधी अधिकार अधीनस्थ अदालतों और न्यायाधिकरणों को अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में रखने और यह निगरानी करने के लिए दिये गये हैं कि ये अदालतें और न्यायाधिकरण कानून का पालन करते रहें।

उच्चतम अदालत ने ‘मोहम्मद इनाम बनाम संजय कुमार सिंघल एवं अन्य’ के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया। इस मामले में किराया नियंत्रक एवं बेदखली अधिकारी ने विवादित सम्पत्ति के मालिक की अर्जी मंजूर करते हुए उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किरायेदारी, किराया तथा बेदखली नियमन) अधिनियम, 1972 के तहत विवादित परिसर खाली करने का अंतिम आदेश पारित किया था, जिसे किरायेदार ने जिला जज के समक्ष चुनौती दी थी।

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जिला जज ने किरायेदार द्वारा दायर संशोधन याचिका मंजूर करते हुए किराया नियंत्रक का निष्कासन आदेश निरस्त कर दिया था। बाद में मालिक ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने संविधान के Article 227 अनुच्छेद 227 के तहत मालिक की याचिका यह कहते मंजूर कर ली थी कि जिला जज ने विवादित सम्पत्ति खाली करने के आदेश और अंतिम आदेश के खिलाफ संयुक्त संशोधन याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करके कानूनन गलत किया था।

उच्च न्यायालय के इस फैसले को किरायेदार ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी, जिसने अपील मंजूर करते हुए जिला जज के आदेश को सही ठहराया।

केस टाइटल – मोहम्मद इनाम बनाम संजय कुमार सिंघल एवं अन्य
केस नंबर – CIVIL APPEAL NO._2697 OF 2020
कोरम – न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बी आर गवई

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