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जब स्वामी विवेकानंद ने मुस्लिम नवाब को समझाया ‘मूर्ति पूजा’ का गूढ़ रहस्य-

स्वामी विवेकानंद जी के पुण्यतिथि पर विशेष-

हमारे देश में अनेक ऐसे संतों ने जन्म लिया है, जिन्होंने पूरी दुनिया में देश का मान बढ़ाया है। वेदान्त और अध्यात्म के गुरु स्वामी विवेकानन्द भी इन्ही संतों में से एक थे, जिन्होंने अमेरिका में भी सनातन धर्म के उच्च आदर्शों से विदेशियों को भी अपना बना लिया था।

स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में हिंदुस्तान की तरफ से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।

भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के प्रत्येक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा।

बता दें स्वामी विवेकानंद सनातन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में पूरे विश्व भर में जाने जाते हैं।

मूर्ति पूजा पर स्वामी विवेकानंद के विचार-

ऐसे तो देखा जाए तो स्वामी विवेकानंद के संबंध में अनेक किस्से कहानियां सुनने को मिलती है, किन्तु आज हम आप लोगों को मूर्ति पूजा पर स्वामी विवेकानंद के विचार बताने जा रहे हैं जिसके संबंध में शायद आप नहीं जानते हैं।

स्वामी विवेकानंद के एक मुस्लिम दोस्त नवाब ने उनके आदर और सत्कार के लिए उन्हें एक दिन अपने घर पर आमंत्रित किया। कुछ समय तक उन दोनों के बीच चर्चा भी चलती रही, जब अधिक समय हो गया और स्वामी विवेकानंद जाने की तैयारी करने लगे, तब उस मुस्लिम नवाब ने स्वामी विवेकानंद से कहा कि ईश्वर और अल्लाह एक ही है तो फिर हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा क्यों की जाती है।

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मुस्लिम नवाब ने जब यह बात कही तब स्वामी विवेकानंद को उन्हें कहा कि ‘आपके सिंहासन के पीछे एक तस्वीर लगी हुई है, जो शायद आपके पिता की है।’

स्वामी विवेकानंद उस नवाब से वह तस्वीर मंगाई और कहा कि इस तस्वीर को बाहर फेंक दें। स्वामी विवेकानंद के इतना कहते ही वह नवाब ने कहा कि इस तस्वीर में मैं अपने पिता का अक्स देखता हूं और इसे मैं कभी नहीं फेंक सकता। इतना कहते ही स्वामी विवेकानंद जी ने उस नवाब से कहा कि जिस प्रकार तुम अपने पिता की तस्वीर में उनका अक्स देखते हो, ठीक उसी प्रकार हिंदू धर्म के लोग भी मूर्ति में भगवान का रूप देखते हैं।

स्वामी जी ने बताया कि वास्तव में ईश्वर एक ही है, एक ही सूर्य है, जो हर जल में अलग, नभ में अलग, पर्वत से अलग और जंगल से अलग दिखाई पड़ता है, लेकिन वो है एक ही। स्वामी विवेकानंद की तर्कपूर्ण बातें सुनकर उस मुस्लिम नवाब भी उन्हें प्रणाम किए बिना नहीं रह सका।

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